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तब झारखंड में रौतिया समाज को भी मिल जाता एसटी का दर्जा, पर अभी भी अटकी फाइल

 


रांची, 23 सितंबर (हि.स.)। झारखंड गठन के बाद राज्‍य के कई समुदायों ने अपनी-अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर मौजूदा सरकार तक अपनी बातें पहुंचाईं। इसी में रौतिया समुदाय ने भी खुद को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर कई बार आंदोलन किया। यह समुदाय एकीकृत बिहार में लगभग 75 वर्षों से अपनी मांग के लिए संंघर्ष कर रहा है।

अलग झारखंड बनने के बाद रघुुुवर दास की सरकार के समय भी इस समुदाय ने जोरदार आंदोलन किया था, तब सरकार ने उनकी मांग को स्‍वीकार करते हुए जल्‍द एसटी का दर्जा देने का आश्‍वासन दिया था। लेकिन उसके बाद इससे संबंधित फाइल आदिवासी जनजातीय मंत्रालय में अटक गई और कभी खूंटी से उठकर प्रदेश और दिल्ली तक पहुंचा यह मामला अब तक ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है।

अखिल भारतीय रौतिया समाज विकास परिषद की ओर से वर्ष 2018 में इस मांग को तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री रघुवर दास के समक्ष रखा गया। साथ ही वर्ष 2022 में तत्कालीन केंद्रीय आदिवासी जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा के दिल्ली स्थित कार्यालय तक भी पहुंचा। इसके बाद तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री रघुवर दास की ओर से संबंधित मामले की फाइल आगे बढ़ाई गई, तो इस समाज के लोगों में उम्मीद जगी कि उनकी पुरानी मांगें पूरी हो जाएंगी। सरकार के साथ समाज के कई केंद्रीय नेताओं के साथ कई स्तर पर साकारात्मक बैठकें भी हुईं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।

क्‍या है रौतिया समाज की मांगें?

परिषद के केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष लालदेव सिंह ने इस बाबत बताया कि उनकी मांगें पूरी तरह से जायज हैं। अपनी मांगों को लेकर समाज के लोगों ने लगातार आंदोलन किया है। सरकार से सकारात्मक बातें भी हुईं, लेकिन केंद्रीय आदिवासी जनजातीय मंत्रालय में मामला अबतक क्यों लंबित है। यह सोचनीय विषय है।

उन्‍होंने बताया कि रौतिया समुदाय पूरी तरह से आदिवासी समुदायों की तर्ज पर आस्था, संस्कृति और सभ्यता को मानने वाला है। उनके पूवर्ज भी सदियों से जंगलव पहाड़ों में रहकर ही आजीविका चलाते हैं। उनका समाज पूरे झारखंड में निवास करता है, जहां उरांव, मुंडा व खड़िया आदिवासी समाज के लोग रहते हैं। खूंटकटी, भुईहरी, पहनई जैसी जमीन उनके पास मौजूद है। वर्ष 1871–72 कि जनगणना में रौतिया समाज जनजातीय वर्ग में शामिल था।

लालदेव सिंह ने बताया कि वर्ष 2018 में राैतिया समुदाय के साथ खेरवार, भोक्‍ता और पुराण समाज ने भी एसटी सूची में शामि‍ल होने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया था। उस समय खेरवार, भोक्‍ता और पुराण समाज को एसटी की सूची में शम‍िल कर लिया गया, लेकिन रौतिया समुदाय के लोगों की मांगें आज भी अधूरी हैं।

उल्लेखनीय है कि दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के जिले में निवास करने वाले रौतिया समाज के लोग पलामू के आदिवासी राजा चेरो राजवंश का वंशज होने का दावा करते हैं। 500 साल पहले पलामू में चेरो राजवंश में राजा महरथा का शासन था। कहा जाता है कि छोटानागपुर क्षेत्र में रहने वाले रौतिया समाज के लोग चेरो राजा के सैनिक थे। पलामू में उन्हें चेरो और इस क्षेत्र में रौतिया समाज के रूप में जाना जाता है। सरकारी दस्तावेजों में चेरो को आदिवासी, जबकि रौतिया को पिछड़ी जाति के रूप में मान्यता दी गई है, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज, जातीय रीति रिवाज और शोध संस्थान से आदिवासियों के रहन-सहन से संबंधित दस्तावेजों से प्रतीत होता है कि रौतिया समाज और चेरो समाज एक ही है।

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हिन्दुस्थान समाचार / Manoj Kumar