जोधपुर में दशमी पर मनाया रावण का श्राद्ध
जोधपुर, 16 सितम्बर (हि.स.)। पौराणिक मान्यता के चलते हिंदू धर्मावलंबी पूर्वजों की मुक्ति एवं शांति के लिए श्राद्ध पक्ष में उनके निधन की तिथि के दिन तर्पण और पिंडदान करते हैं। लंकापति रावण की भगवान श्रीराम के साथ युद्ध में दशमी के दिन मृत्यु हुई थी। ऐसे में दशमी यानी मंगलवार को जोधपुर में रहने वाले दवे-गोधा श्रीमाली ब्राह्मण में गोदा गोत्र के लोगों ने तर्पण और पिंडदान किया। गोदा गौत्र के लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं। यहां किला रोड स्थित अमरनाथ मंदिर में रावण का श्राद्ध किया। यह रावण का मंदिर है।
पंडित कमलेश दवे ने बताया कि इस दिन गोदा दवे गोत्र के वंशज तर्पण करते हैं। इन्हें बल व बुद्धि की प्राप्ति होती है क्योंकि रावण महानायक था। रावण मंदिर में पंडित अजय दवे ने मंगलवार को पंडितों के सानिध्य में मंत्रोचार के साथ तर्पण और पिंडदान किया। तर्पण के दौरान रावण के पिता विश्रवा और दादा महर्षि पुलस्त्य का नाम भी लिया गया। इसके बाद रावण के सामने पूजन किया।
मंडोर की थी मंदोदरी
जोधपुर के मंडोर क्षेत्र के कई लोग मंडोर को रावण का ससुराल मानते हैं। मान्यता है कि मंदोदरी मंडोर की राजकुमारी थीं। मंडोर स्थित प्राचीन चंवरी को रावण और मंदोदरी का विवाह स्थल बताया जाता है। पंडित कमलेश दवे ने बताया कि रावण विवाह के समय अपने कुटुंब के साथ आया था। इसमें हमारे पूर्वज यही रह गए। हम द्रविड़ शैली से हैं। इसके चलते मृत्यु के दौरान त्रिजटा शैली का पालन इसका प्रमाण है। पहले हमारे पूर्वज रावण का तर्पण और श्राद्ध करते थे। उसी अनुसार हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं। जोधपुर में सौ घर
पंडित कमलेश दवे ने बताया कि जोधपुर में रावण की गोदा गोत्र के सौ और फलौदी में करीब 60 परिवार रहते हैं। विजयदशमी को हम रावण दहन नहीं देखते हैं। इस दिन सभी परिवार अपने घरों में सूतक रखते और तर्पण करते हैं। गुजरात में गोदा गोत्र के सर्वाधिक परिवार रहते हैं। पंडित कमलेश दवे ने बताया कि हमारे पूर्वज दशमी को तर्पण करते थे। उनको देखकर हम बड़े हुए हैं। पहले सरोवर पर तर्पण होता था। फिर घरों में तस्वीर देख कर करते थे। वर्ष 2007 में रावण की मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनाया। इसके बाद मूर्ति के सामने तर्पण करते हैं। बाकी लोग घरों में तर्पण करते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश