×

बलरामपुर : बलरामपुर के सुदूर वनांचल में कनहर नदी की गोद में छिपा है सुखलदरी जलप्रपात

 




-प्रत्येक मकर संक्रांति को लगता है यहां अंतरराज्यीय मेला

बलरामपुर, 9 जून (हि.स.)। जिले में एक ऐसा भी पर्यटन स्थल और झरना है, जो अपनी अद्वितीय खूबसूरती से लोगों का मन मोहता आ रहा है लेकिन जिले के पर्यटन के नक्शे से यह नाम गायब है। इस स्थल पर अब तक न तो शौकीन घुमक्कड़ों की नजर पड़ी और न ही स्थानीय जनों की।

जिले से होकर बहने वाली कनहर नदी पर रामानुजगंज से 40 किलोमीटर पश्चिम की ओर स्थित है सुखलदरी। कनहर नदी यहां पर झारखंड और छत्तीसगढ़ को बांटती हुई, दोनो राज्यों की सीमाएं तय करती हुई कुछ ही किलोमीटर आगे जाकर तीन राज्यों की सीमा विभाजक बन जाती है। इस नदी पर उत्तर प्रदेश सरकार ने अमवार ग्राम में एक विशाल बांध बनाया है। जिसे अमवार डेम के नाम से जाना जाता है। अमवार से कनहर उत्तर की ओर प्रवाहित होकर सोनभद्र के कोन नामक स्थान पर सोन नदी से मिल जाती है। इस प्रकार बलरामपुर जिले की जीवन रेखा कही जाने वाली नदी कनहर कोन में सोन नदी में विलीन होकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व त्याग देती है।

सुखलदरी झरना के थोड़ा आगे ही नदी में एक दह(गहरा गड्ढा) है। इस दह की गहराई इतनी अधिक है कि इसकी वास्तविक गहराई आज तक नापी नहीं जा सकी है। लोग कहते हैं कि सात खाट की रस्सियों को जोड़कर इस दह में डालने के बाद भी इसकी गहराई के तल का पता नहीं चल सका। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार इस दह के नामकरण के पीछे एक किवदंती है कि कभी किसी जमाने में प्राचीन काल में यहां नहाने आई सात बहनों की एक साथ जल समाधि हो गई थी तबसे लोग इस दह को अभिशप्त मानने लगे। हालांकि यह मिथक अब धीरे-धीरे टूटता हुआ लगने लगा है।

सतबहिनी दह में लोग भारी संख्या में मत्स्याखेट के लिए एकत्रित होते हैं और निर्भीक होकर जिलेटिन विस्फोट करके मछली मारते हैं। इस दह में बड़ी-बड़ी मछलियां पाई जाती हैं। लोग खदानों में चट्टानों को तोड़ने वाली जिलेटिन नामक विस्फोटक जलाकर दह में फेक देते हैं। इसके पानी के अंदर जाकर फटते ही तेज आवाज, पानी के भारी उछाल के साथ मरी हुई मछलियां पानी की सतह पर फैल जाती हैं और आखेटक इन्हे लेकर चलते बनते हैं। हालांकि ऐसे लोगों का यह प्रतिबंधित विस्फोटक कैसे प्राप्त हो जाता है ? नहीं कहा जा सकता ।

सुखलदरी झरना जहां पर स्थित है उसके एक पाट पर छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले का झारा, कुसफर, सेमरवा, आदि ग्राम बसे हैं तो दूसरी और झारखंड का परासपानी नामक ग्राम स्थित है। नदी यहां पर च‌ट्टानों को काटती हुई तीन वेग से बहती हुई एक उग्र झरना बनाती है। इस झरने की ऊंचाई हालांकि अपेक्षाकृत कम है किन्तु चौड़ाई अधिक और नुकीले च‌ट्टानों के बीच से गिरने के कारण बेहद खतरनाक रूप धारण कर लेता है।

बरसात के दिनों में इस झरने का शोर आसपास के चार-पांच किलोमीटर दूर तक सुनाई देता है। लेकिन जैसे ही नदी के दोनो पाट समभाव से भर जाते है, झरना पूरी तरह पानी में समा जाता है और इसकी आवाज खामोश हो जाती है।

मकर संक्राति में हर साल लगता है मेला

सुखलदरी जल प्रपात का असली सौंदर्य तो तब दिखाई देता है जब मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर यहां सुखलदरी मेला लगता है। इस मेले में नदी के दोनो पाट गुलजार हो जाते हैं। मेले में छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड सहित अन्य प्रांतों के लोग भी यहां बड़ी संख्या में आते हैं। नदी के उस पार टेकरी पर एक प्राचीन मंदिर स्थित है जहां श्रद्धालुजन भक्ति भाव से पूजन-अर्चन करते हैं।

लोगों के अनुसार मेले में आज भी हमारे पुरातन संस्कृति के विशद दर्शन होते हैं। यहां जगह-जगह, नाच, जादूगरी, के साथ बाजार में मिलने वाले सभी सामान, खिलौने, व अन्य सामान एक साथ उपलब्ध रहते हैं। पूरा मेला स्थल में तरह-तरह के देशज पकवानों की खुशबू तैरती रहती है। मेले में आने वाले लोगों की पांवों की चपलता देखते ही बनती है। मेले के दिन से कई दिनों पहले से बसने वाली क्षणिक बस्तियां धीरे-धीरे फिर एक साल के लिए बीरान हो जाती हैं। पीछे रह जाती है कनहर नदी की बहती हुई चुपचाप एक धारा जो सोन नद से मिलने के लिए निरंतर प्रवाहमान है।

हिन्दुस्थान समाचार / विष्णु पांडेय