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सोनपुर मेला के मिट्टी की सीटी और घिरनी में गूंजती परंपरा की धुन

 










सारण, 21 नवंबर (हि.स.)। एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में विख्यात हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला, सदियों पुरानी लोक कला और परंपराओं का जीवंत संगम है।

मेले के एक कोने में एक ऐसी अनमोल विरासत आज भी अपनी मधुर ध्वनि बिखेर रही है, जिसे देखने और खरीदने के लिए हर साल श्रद्धालु और पर्यटक उमड़ते हैं मिट्टी की बनी पारंपरिक सीटी और घिरनी परंपरा का प्रतीक और बाबा हरिहरनाथ का शगुन भी है। जिसे मेले के इतिहास और स्थानीय लोक कथाओं के अनुसार मिट्टी से बनी ये साधारण सी कलाकृतियाँ केवल खिलौने ही नहीं बल्कि बाबा हरिहर नाथ भगवान शिव और विष्णु का संयुक्त रूप के प्रतीक हैं।

मान्यता है कि मिट्टी की घिरनी जो हरि भगवान विष्णु का और सिटी जो भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करती है। जो भी इस मेले में आता है वह इसे शगुन के तौर पर अपने घर ले जाना शुभ मानता है।

हरिपुर, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर, और सीतलपुर निवासी कारीगर इसे मिट्टी, बांस और चारकोल से बनाते है. मिट्टी से बनने के कारण ये आसानी से सस्ते दामों में मिल जाता है. विक्रेता लैला बताती है लोग महंगे सामान तो खरीदते हैं, पर बिना सीटी और घिरनी लिए कोई सोनपुर से नहीं जाता। यह मेले की पहचान है, बचपन की याद है और हरिहर नाथ का आशीर्वाद भी।

स्थानीय ठाकुर संग्राम सिंह ने बताया कि एक समय था जब ये हस्तनिर्मित खिलौने 5 पैसे में चार मिला करते थे, लेकिन आज भी इनकी कीमत बेहद मामूली है ₹10 से ₹20 में ये आसानी से मिल जाते हैं। एक ओर जहां बाजार में प्लास्टिक और आधुनिक खिलौनों का बोलबाला है वहीं मिट्टी के कारीगर आज भी अपनी इस पारंपरिक कला को ज़िंदा रखे हुए हैं।

ये पर्यावरण प्रेमी खिलौना अपनी सादगी और सांस्कृतिक महत्व के कारण विदेशी पर्यटकों के बीच भी खासे लोकप्रिय हैं, जो इन्हें भारत की लोक कला के एक विशेष स्मृति-चिह्न के तौर पर खरीदते हैं। हालांकि इस कला को बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि प्लास्टिक के सस्ते विकल्प और सही पारिश्रमिक न मिलने के कारण अब नई पीढ़ी इस काम से दूर हो रही है। उनकी मेहनत और बढ़ती लागत के सामने, इन खिलौनों की मामूली कीमत उनके जीवन-यापन के लिए पर्याप्त नहीं है।

सोनपुर मेले की चमक-दमक में ये मिट्टी के खिलौने एक शांत, लेकिन महत्वपूर्ण कहानी कहते हैं। जब आप मेले से वापस लौटते हैं, तो शायद ये छोटी सी सीटी और घिरनी ही वह वस्तु है, जो आपको वर्षों बाद भी विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले की याद दिलाती रहेगी।

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हिन्दुस्थान समाचार / धनंजय कुमार