अछरीखाल कभी आंछरियों का था प्रदेश, आज माता के जयकारों से गूंज रहा मंदिर
पौड़ी गढ़वाल, 23 सितंबर (हि.स.)। देवभूमि उत्तराखंड में कई स्थल और ऊंची पहाडियां ऐसे भी हैं, जिन्हें लोककथाओं में आंछरियो का प्रदेश नाम से पुकारा जाता है। उत्तराखंड की कई लोकगाथाओं में आपने आंछरियो का जिक्र जरूर सुना होगा। आंछरी जिन्हें पहाड़ की परी भी कहा जाता है। पहाड़ की लोककथाओं में इनके किस्से काफी प्रचलित हैं। इन्हीं आंछरियो का एक प्रदेश पौड़ी की अछरीखाल को भी कहा जाता है। जहां माता वैष्णो देवी का मंदिर भी है। नवरात्र में भक्तों की भीड और मां वैष्णों देवी के जयकारों से मंंदिर प्रांगण गूंज रहा है।
लोककथा के अनुसार माना जाता है कि पौड़ी के अछरीखाल में कभी आंछरी यानी कि परियों का वास हुआ करता था। यहीं पास के तालाब में परिया नहाने पहुंचती थी, इसी वजह से इस स्थल का नाम अछरीखाल पड़ा, जहां कभी घना जंगल हुआ करता था धीरे-धीरे इस क्षेत्र का विकास हुआ और यहां बसे क्षेत्रवासी माता वैष्णों देवी के शरण में रहते हैं।
चैत्र नवरात्र हो या शारदीय नवरात्र इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। इस बार भी मां वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए भक्त सुबह से ही मंदिर में पहुंच रहे हैं और शाम तक मंदिर भक्तों की भीड़ से भरा रहता है। मान्यता है कि जो भी भक्त मां वैष्णो देवी के दर पर सच्ची आस्था के साथ पहुंचता है, उसकी मुराद मां पूरी करती हैं और अपने भक्तों के हर कष्ट हर लेती हैं।
मंदिर का हुआ था जीर्णोद्धार
मंदिर के संस्थापक राजेंद्र रावत ने बताया कि पौड़ी- देवप्रयाग मोटर मार्ग पर स्थित अछरीखाल में माता वैष्णो देवी मंदिर का निर्माण साल 2000 में किया गया। इससे पूर्व यहां माता काली का एक छोटा मंदिर हुआ करता था। राजेंद्र ने बताया कि जम्मू के कटरा से माता की पिंडियों को पूजा-अर्चना कर इस स्थल पर लाया गया और इस स्थल पर स्थापित किया गया। तब से मंदिर को वैष्णो देवी नाम से जाना जाता है। बताया कि नवरात्र में यहां मंदिर में चण्डी, पाठ, रुद्र पाठ, जप, आदि पाठों की विधि- विधान से माता वैष्णों देवी की पूजा अर्चना की जाती है।
हिन्दुस्थान समाचार / कर्ण सिंह