पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल विष्णु कांत चतुर्वेदी ने संघ को लेकर अपने अनुभव किए साझा
रांची, 9 अक्टूबर (हि.स.)। पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल विष्णु कांत चतुर्वेदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में अपने विचार साझा किए हैं। उन्होंने संघ को लेकर अपने अनुभव के बारे में कहा कि हम सब ने बहुत कुछ जाने अनजाने में इस संगठन के कार्य और उसकी संरचना के बारे में सुना है या फिर स्वयं भी किसी न किसी रूप में अनुभव किया है। मेरा भी इस संगठन से जुड़ाव कुछ इसी प्रकार हुआ।
उन्होंने बताया कि वे 31 मई 2011 को भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुए। तब तक उन्होंने संघ के बारे में अखबारों, पत्रिकाओं या फिर कभी किसी राजनीतिक चर्चाओं में सुना था। मैं इस संगठन के उत्कृष्ट कार्यों से अनभिज्ञ रहा। ऐसा भी नहीं कि मैंने अपने सेना के सेवाकाल में इस संगठन के कार्यों का अनुभव नहीं किया, लेकिन कभी ध्यान ही नहीं दिया। उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें इस संगठन के कुछ कार्यक्रमों में भाग लेने का अवसर मिला। इसमें उन्हें एक अप्रत्याशित सुख का अनुभव हुआ। कभी-कभी कुछ विविध संगठन उन्हें अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित करने लगे तो वे कार्यक्रमों में जाने लगे।
वे कहते हैं कि कार्यक्रमों में जाकर बहुत अच्छा लगता था। आत्मीयता, सहजता, नम्रता का व्यवहार मुझे बहुत ही प्रभावित करता था। सभी को आदर, सदैव भाषा की मर्यादा का पालन, अनुशासन और समय का पालन मुझे अपने सेना के सेवाकाल की यादों में ले जाता था। उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे वे संघ की कार्यशैली में पूरी तरह से रम गये। वे संघ के कुछ महत्वपूर्ण पदाधिकारियों के सम्पर्क में भी आने लगे। उनकी विचारधारा, नैतिक मूल्य और राष्ट्र के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की भावना उन्हें बेहद प्रभावित करने लगी। ये वही मूल्य थे जिनको उन्होंने सेना में रहते हुए पूर्णरूपेण स्वीकार कर चुके थे, इसलिए उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अपनापन लगने लगा। वे इस परिवार का एक छोटा सा हिस्सा बन गये।
विष्णु कांत चतुर्वेदी कहते हैं कि व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का यह वाक्य केवल वाक्य नहीं है, उन्हें इन 12-13 वर्षों में इस पर कैसे अमल किया जाता है स्वयं देखा है। संकल्प से सिद्धि किस प्रकार प्राप्त होती है, यह उन्होंने अनुभव किया है। जब भी कोई समस्या, किसी भी क्षेत्र से हो, आती है, तो उस पर गहन विचार किया जाता है। इस पर सामूहिक चर्चा होती है। सभी को अपने विचार रखने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। यही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विशेषता है।
उन्होंने कहा कि वे पूर्ण रूप से आश्वस्त हैं और पूरे विश्वास के साथ कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना एक दैवीय संयोग है। भारत की पहचान, भारत की संस्कृति की निरंतरता, भाषा, विरासत, धरोहर और परंपराओं की रक्षा के लिए ईश्वर ने इस संगठन की स्थापना की है। अगर विजय दशमी के दिन वर्ष 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना डॉ केशव बलिराम हेडगेवार नहीं करते तो हमारे प्रिय भारत का भविष्य क्या होता शायद कोई नहीं बता सकता। केवल कल्पना की जा सकती है। कठिन परिस्थितियों में कोई भी साधन न उपलब्ध होने के बाबजूद भी ये मुठ्ठी भर कर्मठ, निष्ठावान कार्यकर्ता अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपना सर्वोच्च समर्पित कर एक भारत श्रेष्ठ भारत के मार्ग पर प्रशस्त हो गये।
वे कहते हैं कि असंख्य कठिनाइयों, सामाजिक, प्रशासनिक, राजनीतिक विरोध और बहुत ही न्यूनतम साधनों के साथ ये कार्यकर्ता प्रतिबद्धता और निष्ठा के साथ समर्पण भाव से केवल राष्ट्र और समाज निर्माण के लिए दृढ़ संकल्प के साथ लगे रहे। भारत को और भारतीयता को बचाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का योगदान अकल्पनीय है और अनुकरणीय है।
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हिन्दुस्थान समाचार / विकाश कुमार पांडे