संतान देने वाले तूतुकुड़ी शंकर रामेश्वरर मंदिर में तिरुवादिरै उत्सव शुरू, 3 जनवरी को आर्त्र दर्शन
तूतुकुड़ी, 29 दिसंबर (हि.स.)। तमिलनाडु के सभी शिव मंदिरों में पारंपरिक रूप से हर वर्ष तिरुवादिरै उत्सव मनाया जाता है। तूतुकुड़ी के शंकर रामेश्वरर मंदिर में तिरुवादिरै उत्सव की शुरूआत हो चुकी है। 10 दिन तक चलने वाले इस में आयोजन में 3 जनवरी को आरुद्रा (आर्त्र) दर्शन उत्सव होगा है। इस दिन मंदिर में विशेष पूजा और दर्शन का अधिक महत्व है। मंदिर के पास में स्थित बावड़ी में स्नान कर भगवान की पूजा करने से संतान सुख मिलने की मान्यता है।
तमिलनाडु में हर साल तमिल वर्ष के मार्गलि मास के तिरुवादिरै नक्षत्र वाले दिन सभी शिव मंदिरों में तिरुवादिरै उत्सव 10 दिनों तक चलता है। यहां
पिछले 25 दिसंबर से उत्सव चल रहा है। उत्सव के दिनों में प्रतिदिन विशेष पूजा आयोजित की जाती है। तमिलनाडु में तिरुवादिरै कहा जाने वाला नक्षत्र उत्तर भारत में आर्त्र के नाम से जाना जाता है। कर्नाटका में इसे पुष्य मास (पुष्य) कहते हैं। सभी शिव मंदिरों में आर्त्र दर्शन किया जाता है और इसी के हिस्से के रूप में, तूतुकुड़ी शिव मंदिर में 10 दिनों का आर्त्र दर्शन उत्सव आयोजित किया जाता है। इस बार 3 जनवरी को आर्त्र दर्शन होगा है। तिरुवादिरैउत्सव के दिनों में नटराज और शिवगामी अंबाल के लिए तिरुवेम्बवई गीत गाए जाते हैं और विशेष दीप आराधना की जाती है। इसमें बड़ी संख्या में भक्त भाग लेते हैं और भगवान का दर्शन करते हैं।
यह चमत्कारिक मंदिर शंकर रामेश्वर मंदिर तूतुकुड़ी शहर के हृदय भाग में स्थित है। यह मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना है और इस मंदिर के मुख्य देवता शंकर रामेश्वर और अंबिगाई भागंबीरियल हैं। तूतुकुड़ी का प्राचीन नाम 'तिरुमंत्र नगर' था। माना जाता है कि शिव ने पार्वती देवी को यहीं प्रणव मंत्र पढ़ाया था। इसी कारण इस स्थान को 'तिरुमंत्र नगर' कहा गया। कश्यप, गौतम, भारद्वाज और अतरी जैसे ऋषियों ने इस मंदिर में शिव भगवान की पूजा करके आशीर्वाद प्राप्त किया ऐसा कहा जाता है। तिरुचेंदूर के सुब्रह्मण्य स्वामी के दर्शन के लिए इस मार्ग से आए कश्यप ने यहीं लिंग स्थापित करके पूजा की। बाद में, पांड्य राजवंश में एक छोटे नगर के राज्यपाल शंकर राम पांड्यन, उन्होंने गैथरन को राजधानी बनाकर शासन किया। राजा के कोई संतान नहीं थी। इसी कारण राजा पवित्र स्थानों जैसे काशी में जाकर पवित्र स्नान करता और विशेष पूजा करता। एक बार, जब राजा और उसका परिवार पवित्र स्नान के लिए जा रहे थे, भगवान की आवाज़ उस शारीरिक कान से स्पष्ट रूप से सुनाई दी, पांड्यन, 'तिरुमंतर' नगर में स्थित काशी के समान वंज पुष्करणी तीर्थ में स्नान करो, और वहां शिवलिंग की पूजा करो। तुम्हें संतान का भाग्य मिलेगा। इसके बाद राजा शंकर राम पांड्यन ने वंज पुष्करणी तीर्थ में स्नान किया। बाद में राजा के यहाँ संतान हुई। आज भी मान्यता है कि 'वंच पुष्करणी' बावड़ी में स्नान कर भगवान की पूजा करने से संतान प्राप्त होती है।
मंदिर में पूर्व दिशा की ओर सुंदर पांच-तल वाला राजगोपुरम है। दो प्रकार के हैं। इस मंदिर के पास परुमाल मंदिर भी है। शिव मंदिर के सामने अर्थमंडप और महामंडप हैं। इस मंदिर के शिव लिंग रूप में हैं। देवी दक्षिण की ओर मुख कर नृत्य करती लड़की जैसी दिखाई देती हैं। इस मंदिर के देवता का नाम शंकररमेश्वरर रखा गया। यहां होने वाले वार्षिक उत्सवों में चित्तिरै परुंधिरु उत्सव विशेष है।
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हिन्दुस्थान समाचार / Dr. Vara Prasada Rao PV