हरियाली की चादर में ढका छत्तीसगढ़ का बलरामपुर वनक्षेत्र
बलरामपुर, 25 जून (हि.स.)। बरसात की इस रिमझिम बारिश में इन दिनों छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के जंगल पहाड़ों का सौंदर्य निखर चला है। आंखों को बोध लेने वाले हरे-भरे नजारे चारों ओर जहां तक नजरें जाती हैं, दिखाई देने लगे हैं। प्रकृति ने हरी चादरों से अपना श्रृंगार करते हुए प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करने की पूरी व्यवस्था कर ली है।
बलरामपुर प्राकृतिक रूप से घने जंगलों से घिरा एक खूबसूरत क्षेत्र है। वनों के मामले में यह इतना सम्पन्न है कि यहां का एक बहुत बड़ा भू-भाग सेमरसोत अभ्यारण्य के नाम से जाना जाता है। इस अभयारण्य में जहां बहुमूल्य वनौषधि वाले पेड़-पौधे हैं, वहीं अनेक नदियों का भी यहां से उद्गम होता है। इस अभ्यारण्य में कई प्रकार के जीव-जन्तु भी शरण स्थली बनाए हुए हैं। सेमरसोत न केवल विशाल लम्बे-चौड़े क्षेत्र में फैला हुआ वन है बल्कि सरगुजा संभाग का गौरव भी है। यह क्षेत्र कई पहाड़ों के बीच भी घिरा हुआ है।
जंगल गर्मी में आग से दहकता है बरसात में हरियाली से
बलरामपुर के वनक्षेत्र में गर्मियों में आग लगने की घटनाएं देखी जाती हैं। पहाड़ी से लेकर भू-स्थली वनों में अक्सर आग की ऊंची-ऊंची लपटें यहां दिखाई देती हैं। पूरा पहाड़ और भीतरी वन क्षेत्र बंजर और घटियल मैदान आग और शोले में बदल जाते हैं। पूरा क्षेत्र जो लगभग साढ़े चार सौ वर्ग किलो मीटर में फैला है, एकदम से उजाड़ हो जाता है। जंगल के सारे नदी-नाले सूख जाते हैं। सारे पशु-पक्षी पानी भोजन की तालाश में जंगल छोड़कर पलायन करने लगते हैं परन्तु जैसे ही यहां की धरती पर बरसात की बूंदें पड़ती हैं। हरियाली उगने लगती है। नदी-नाले में जल की धाराएं फूटने लगती हैं तब सारे, पशु-पक्षी अपने क्षेत्र में लौट आते हैं और वनक्षेत्र फिर से गुंजायमान हो उठता है। इन दिनों बलरामपुर वन क्षेत्र का वातावरण कुछ ऐसा ही चला है। न तो पहाड़ों पर एक भी चट्टान दिखाई दे रही है न ही एक इंच जमीन का भू-भाग। बस, जिधर भी देखा जाए, हरियाली ही हरियाली।
बरसात का मौसम अपने साथ यहां न केवल हरियाली लेकर आता है बल्कि गांव के गरीब, सर्वहारा वर्ग के लोगों के लिए आजीविका का नया आसरा भी साथ-साथ लाता है। जंगल के भीतरी भू-भागों में खुखड़ी, पुटू, मशरूम जैसे महंगे कंदमूल के लिए लोग खासकर महिलाओं एवं बालकों का समूह जंगल में विचरण करने लगता है, जिसे बाद में ये लोग सड़कों के किनारे इसे बेहद महंगे दाम पर आते-जाते राहगीरों को बेचते हैं।
मशरूम विक्रेता दिनेश सिंह ने बताया कि इन दिनों इस क्षेत्र में यह प्राकृतिक रूप से उगने वाला मशरूम आठ सौ रूपये किलो तक बिक रहा है। इसके अलावा जंगली करैली, खोसा, कुंदरू जैसे सब्जी वर्गीय फल भी बहुतायत में मिलने लगते हैं। बास की झुरमुटों में नए बांसी के अंकुरण जिसे करील के नाम से जाना जाता है लोग चोरी छुपे इसे तोड़ते हैं, क्योंकि इस पर कठोर प्रतिबंध है। फिर भी लोग इसे तोड़कर ऊंचे दामों में बेचते हैं। कुल मिलाकर इन दिनों यहां का जंगल गुलजार है। हरियाली की यहां चारों ओर बहार है।
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हिन्दुस्थान समाचार / विष्णु पांडेय