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डॉ. सुनील आम्बेकर बोले, पहले संस्कृति का चयन फिर तकनीकी को लेकर बनाएंगे आने वाला भारत

 




















-भारत की संस्कृति की विशेषता जोड़कर रखना, प्रतीक भारतीय पहचान और विरासत का मूलभूत हिस्सा हैं

देहरादून, 21 नवम्बर (हि.स.)। भारत को जानने की जरूरत है, जिसे आध्यात्म के जरिए ही जाना जा सकता है। भारत की संस्कृति की विशेषता जोड़कर रखना है। पहले संस्कृति का चयन फिर तकनीकी को लेकर बनाएंगे आने वाला भारत। भारत की हजारों वर्ष की यात्रा में कई प्रतीकों का जन्म हुआ। चिंता की बात ये है कि अध्यात्म की सुंदरता लुप्त हो रही है, जिसे संजोने और संरक्षित करने की जरूरत है।

मंगलवार सायं सर्वे चौक स्थित आईआरडीटी सभागार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. सुनील आम्बेकर ने ये विचार विश्व संवाद केंद्र की ओर से आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अध्यात्म के संजोने के लिए पुस्तकें बड़ी भूमिका निभा सकती है। विकसित देशों की अपनी जीवन पद्धति है लेकिन भारत की जीवन पद्धति ,भारत की जीवन शैली को अपनी संस्कृति परंपरागत तौर तरीके से रहने की है, यही हमारा व्यवहार है।

आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. आम्बेकर ने कहा कि हमें आधुनिक होना चाहिए, अनुसंधान पर भी जाना चाहिए, लेकिन नारों में बहना नही चाहिए। हम तकनीक से आगे बढ़ते हैं, हम चांद पर भी पहुंचे हैं वो भी संघर्ष की यात्रा है, लेकिन हमने उतना ही संघर्ष श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए भी किया है। हमने अपनी संस्कृति अपने सनातन को नही छोड़ना है।

डा. आम्बेकर ने कहा कि हिन्दुत्व यात्रा का वर्णन हमारे ग्रंथों में है। हम सभी को साथ लेकर चलते हैं। हम सभ्यता और संस्कृति की यात्रा हिन्दुत्व में ही ढूंढते हैं, वही सही मार्ग और समानता का मार्ग है। हमारे त्योहार समानता का व्यवहार हैं, जो हमें जोड़ती चली जाती है।

उन्होंने कहा कि कोई जादू नहीं था कि दुनिया ने योग को अपना लिया, योग शुद्धता का भाव लिए हुए था। सब के लिए उपयोगी, सबके लिए कल्याणकारी भी था। ऐसे कई अनुसंधान, ऐसे कई विषय हैं, जो विश्व के कल्याणकारी होंगे और अब इसे विश्व स्वीकार कर रहा है। हमारे देश में हजारों लोगों ने राष्ट्र अराधना की है। भारत की विशेषता को जोड़ कर रखना है। आधुनिक समय में इन बातों का बड़ा महत्व है। नए अनुसंधान को समझना चाहिए। देश में एक तरफ चांद पर पहुंचने में सफलता मिली। साथ ही भगवान राम को भी पकड़े हुए हैं। भगवान राम के लिए लंबा संघर्ष चला है। श्रीराम के परिवार के व्यवहार एक दूसरे के लिए प्रेरक हैं।

उन्होंने कहा कि देश में कुछ लोगों को भूलने की आदत है, जिन्हे जगाना जरूरी है,जो कल तक ये भूल गए थे कि श्रीराम कहां पैदा हुए , हुए भी कि नहीं ? आज वही स्मृतियां वापस आ रही हैं। कुछ लोग 1947 के बाद के भारत को भारत मानते हैं, लेकिन भारत का इतिहास हजारों साल पुराना है।

उन्होंने कहा कि नया भारत नई पीढ़ी का जरूर है, लेकिन इस पीढ़ी को पुराने भारत के विषय में भी बताना जरूरी है। पुरातन व्यवस्था आज भी धरोहर है और ओरिजनल है। हिन्दुत्व का अर्थ राष्ट्र की यात्रा को स्वतंत्र समझना है। असुरक्षा की दृष्टि से यात्रा का प्रारम्भ नहीं हुआ। सबको साथ जोड़ने के लिए यात्रा की शुरुआत हुई है। पूर्वज जानते थे कि सभ्यता और संस्कृति को ढूंढना होगा।

इस अवसर पर विश्व संवाद केन्द्र की पत्रिका हिमालय हुंकार के दीपावली विशेषांक का भी विमोचन किया गया। साथ ही पूर्व आईएएस सुरेंद्र सिंह पांगती की पुस्तक साक्षात आदि शक्ति : उग्रावतारा नंदा का भी विमोचन किया गई। रावत ने नंदा देवी के विषय में जानकारी दी।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व मेजर जनरल शम्मी सब्बरवाल ने कहा कि ये संघ की विचार धारा विश्व को साथ लेकर चलने वाली है। वो अपने लिए हम सबके के लिए सोचते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुरेंद्र मित्तल ने सभी का आभार प्रकट किया।

मंच पर विश्व संवाद केंद्र के निदेशक विजय, पूर्व आईएएस सुरेंद्र पांगती, रंजीत सिंह ज्याला भी मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन प्रांत मीडिया संवाद प्रमुख बलदेव पाराशर ने किया। कार्यक्रम में प्रांत प्रचारक डॉ. शैलेंद्र, क्षेत्र प्रचार प्रमुख पदम, सह प्रचार प्रमुख संजय,पूर्व राज्यसभा सदस्य तरुण विजय आदि गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/राजेश

/रामानुज