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अजित पवार की सहकारिता में नई ताकत: चुनावी जीत से बढ़ी राजनीतिक स्थिति

महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने सहकारिता की राजनीति में एक महत्वपूर्ण वापसी की है। 1984 के बाद पहली बार चुनावी मैदान में उतरे, उन्होंने मालेगांव सहकारी चीनी मिल संगठन के चुनाव में अपने पैनल के साथ शानदार जीत हासिल की। इस जीत ने उनकी राजनीतिक स्थिति को मजबूत किया है, जबकि उनके चाचा शरद पवार की स्थिति कमजोर होती जा रही है। क्या यह बदलाव भविष्य में और भी महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं का संकेत है? जानें पूरी कहानी में।
 

अजित पवार की सहकारिता में वापसी

महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार की राजनीतिक ताकत लगातार बढ़ती जा रही है। चार दशकों के बाद, वे सहकारिता की राजनीति में सक्रिय हुए हैं। उन्होंने आखिरी बार 1984 में बारामती में सहकारिता चुनाव लड़ा था। हाल ही में, उन्होंने मालेगांव सहकारी चीनी मिल संगठन के चुनाव में भाग लिया, जहां वे अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बने। उनके पैनल ने सभी 21 पदों के लिए चुनाव लड़ा और 20 सीटों पर जीत हासिल की। अध्यक्ष पद के लिए उन्हें लगभग 90 प्रतिशत वोट मिले।


उनके चाचा, शरद पवार ने अध्यक्ष पद के लिए कोई उम्मीदवार नहीं उतारा, लेकिन अन्य पदों पर उनके उम्मीदवार थे। इस चुनाव में शरद पवार के पोते युगेंद्र पवार को भी मैदान में उतारा गया था, लेकिन वे एक भी सीट नहीं जीत पाए। अजित पवार ने सहकारिता की राजनीति में अपने चाचा को मात देकर एक महत्वपूर्ण जीत हासिल की है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि शरद पवार ने इस बार पूरी ताकत नहीं लगाई। अब सवाल यह है कि क्या वे भविष्य में अपनी ताकत को फिर से जुटा पाएंगे? उनकी शारीरिक और राजनीतिक स्थिति दोनों ही कमजोर हो गई हैं। इसलिए, भले ही वे अपनी पार्टी के विलय को रोकने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन यह संभव है कि अंततः उनकी पार्टी का विलय अजित पवार की पार्टी के साथ हो जाए।