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अजीत डोभाल का रूस दौरा: भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का प्रतीक

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का मॉस्को दौरा भारत और रूस के बीच रक्षा और ऊर्जा सहयोग को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण है। इस यात्रा के दौरान, डोभाल रूस के वरिष्ठ अधिकारियों से मिलकर एस-400 और Su-57 जैसे रक्षा सौदों पर चर्चा करेंगे। भारत ने अमेरिका की आलोचना को खारिज करते हुए अपनी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। इस दौरे को भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का प्रतीक माना जा रहा है। जानें इस यात्रा के प्रमुख पहलुओं के बारे में।
 

डोभाल का मॉस्को दौरा

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल वर्तमान में मॉस्को में हैं, जहां उनका दौरा भारत और रूस के बीच रक्षा और ऊर्जा सहयोग को मजबूत करने पर केंद्रित है। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका, विशेषकर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद पर कड़ी प्रतिक्रिया दे चुके हैं। ट्रंप ने भारत को रूस से तेल खरीदने और यूक्रेन युद्ध पर तटस्थ रहने के लिए आलोचना की है, साथ ही भारतीय वस्तुओं पर नए व्यापार शुल्क लगाने की चेतावनी भी दी है।


भारत की ऊर्जा जरूरतें सर्वोपरि

हालांकि, भारत ने इस आलोचना को पूरी तरह से खारिज करते हुए कहा है कि उसकी ऊर्जा आवश्यकताएं और राष्ट्रीय हित सबसे महत्वपूर्ण हैं। विदेश मंत्रालय ने सोमवार को एक बयान में अमेरिका और यूरोपीय संघ की आलोचना को 'अनुचित' बताया और कहा कि पश्चिमी देश भी रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं। इस संदर्भ में, डोभाल की यात्रा को भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के रूप में देखा जा रहा है।


डोभाल का दौरा पूर्व निर्धारित

रूसी समाचार एजेंसी TASS के अनुसार, अजीत डोभाल की यह यात्रा पहले से निर्धारित कार्यक्रम का हिस्सा है। सूत्रों के अनुसार, इस दौरे का मुख्य ध्यान रक्षा सहयोग पर होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति की गंभीरता पर भी चर्चा की जाएगी, साथ ही रूसी तेल की आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी बातचीत होगी।


रक्षा सौदों पर चर्चा की संभावना

मॉस्को में, डोभाल रूसी रक्षा उद्योग के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात करेंगे। चर्चा में एस-400 मिसाइल प्रणाली की अतिरिक्त खरीद, भारत में मेंटेनेंस इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना और रूस के अत्याधुनिक Su-57 फाइटर जेट्स की संभावित डील शामिल हो सकती है। भारत इस दौरे को रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मान रहा है, क्योंकि यह भविष्य के रक्षा सौदों की दिशा तय कर सकता है।


भारत की स्वतंत्र विदेश नीति

भारत सरकार इस यात्रा को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के अनुरूप मानती है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत-रूस संबंध आपसी समझ और दीर्घकालिक साझेदारी पर आधारित हैं, और किसी तीसरे देश की राय से इन पर असर नहीं पड़ेगा। मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सर्वोपरि मानता है और वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिर बनाए रखने के लिए जिम्मेदार व्यापार करता रहेगा।


विदेश मंत्री का भी रूस दौरा

डोभाल के बाद, विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी 27 और 28 अगस्त को रूस का दौरा करेंगे। वह वहां अपने समकक्ष रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात करेंगे और द्विपक्षीय एवं वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करेंगे। इसके अलावा, वह रूस के उप-प्रधानमंत्री यूरी बोरिसोव के साथ भारत-रूस तकनीकी और आर्थिक सहयोग पर आयोजित अंतर-सरकारी आयोग की सह-अध्यक्षता भी करेंगे।


भारत-रूस संबंधों पर बाहरी दखल नहीं

सरकार ने स्पष्ट किया है कि भारत-रूस संबंध दीर्घकालिक, भरोसेमंद और बहुआयामी हैं। इस पर किसी तीसरे देश की टिप्पणी या दखल अनुचित है। भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं आएगा और अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेगा।