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अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति समर्थन: वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव

अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति हालिया समर्थन वैश्विक शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है। जनरल माइकल कुरिला के बयान से स्पष्ट होता है कि अमेरिका भारत के साथ अपने संबंधों को बनाए रखते हुए पाकिस्तान के साथ भी सहयोग कर रहा है। इस स्थिति में चीन और रूस का समर्थन पाकिस्तान को और मजबूत कर रहा है। क्या भारत इस मुद्दे पर अकेला पड़ गया है? जानें इस लेख में।
 

अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति समर्थन

पाकिस्तान को अमेरिका का खुला समर्थन उस समय मिला है, जब चीन और रूस उसे अपने समीकरणों में शामिल करने के लिए प्रयासरत हैं। यह एक ऐसा क्षण है, जब दुनिया की तीन प्रमुख शक्तियों की छत्रछाया पाकिस्तान पर दिखाई दे रही है।


यह बयान अमेरिका के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी जनरल माइकल कुरिला का है, जो यूएस सेंट्रल कमान (सेंटकॉम) के कमांडर हैं। उन्होंने यह बात अमेरिकी संसद के निचले सदन, हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव की सशस्त्र सेना समिति के समक्ष कही। इस प्रकार, यह बयान अमेरिका के आधिकारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। जनरल कुरिला ने कहा, 'अमेरिका के भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ संबंध हैं। पाकिस्तान के साथ संबंधों की कीमत पर भारत के साथ संबंधों को नहीं छोड़ा जा सकता।' उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के योगदान को 'असाधारण' बताया।


अब किसी को भी यह भ्रम नहीं रहना चाहिए कि अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ किसी मुहिम में भारत का सहयोग करेगा। इसके साथ ही, यह भी ध्यान देने योग्य है कि 14 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा आयोजित भव्य सेना दिवस समारोह में पाकिस्तान के फील्ड मार्शल असीम मुनीर को आमंत्रित किया गया है। यह स्पष्ट है कि मुनीर के कट्टरपंथी दृष्टिकोण पर भारत की आपत्तियों के बावजूद, ट्रंप प्रशासन भारत की भावनाओं का ध्यान नहीं रखता।


अमेरिका का यह रुख उस समय सामने आया है, जब चीन खुलकर पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है और रूस विकासशील देशों में नए समीकरणों के तहत पाकिस्तान को स्थान दिलाने के लिए प्रयासरत है। इस प्रकार, यह एक ऐसा समय है जब दुनिया की तीन बड़ी शक्तियों की छत्रछाया पाकिस्तान पर दिखाई दे रही है। इसका अर्थ यह है कि भारत का आतंकवाद और पाकिस्तान को समानार्थी बताने का प्रयास फिलहाल प्रभाव खोता दिख रहा है। संभवतः इसका कारण पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति है, जो सभी शक्तियों के लिए महत्वपूर्ण नजर आ रही है। इससे भारत की रणनीतिक चुनौतियाँ बढ़ गई हैं। यह भारत की कूटनीतिक विफलता है या नहीं, इस पर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं, लेकिन अब इसे स्वीकार कर लेना ही बेहतर है कि भारत इस मुद्दे पर अकेला पड़ गया है।