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अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में सामरिक बदलाव: एक नई रणनीति का उदय

हाल के दिनों में अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं, जो केवल कूटनीतिक नहीं बल्कि सामरिक भी हैं। शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पॉल पोस्ट के अनुसार, अमेरिका अब पाकिस्तान को एक लॉजिस्टिकल एनाब्लर के रूप में देखता है, जो चीन और ईरान के निकट अमेरिकी सैन्य शक्ति को पहुँचाने में मदद करता है। यह बदलाव दक्षिण एशिया की भू-राजनीति को जटिल बना सकता है। जानें इस संबंध में और क्या महत्वपूर्ण बातें हैं और भारत को क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए।
 

अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में सामरिक बदलाव

हाल के समय में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंधों में जो तेजी आई है, वह केवल कूटनीतिक नहीं बल्कि गहरे सामरिक कारणों से भी जुड़ी हुई है। शिकागो विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर पॉल पोस्ट ने इस विषय पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है। उनके अनुसार, वाशिंगटन अब पाकिस्तान को एक "कूटनीतिक साझेदार" के रूप में नहीं देखता, बल्कि इसे एक "लॉजिस्टिकल एनाब्लर" के रूप में मानता है, जो अमेरिकी सैन्य शक्ति को चीन और ईरान के निकट पहुँचाने में मदद करता है।




प्रोफेसर पोस्ट के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने विदेश नीति को सैन्य दृष्टिकोण से परिभाषित किया है। हाल ही में डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस का नाम बदलकर डिपार्टमेंट ऑफ वॉर रखने का निर्णय इसी मानसिकता का प्रतीक है। यह स्पष्ट संदेश है कि अमेरिकी शासन के लिए युद्ध और सैन्य शक्ति अब केवल एक साधन नहीं, बल्कि नीतिगत ढांचे का केंद्र बन गए हैं। इस सोच का सीधा प्रभाव पाकिस्तान पर पड़ रहा है। पॉल पोस्ट के अनुसार, पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति अमेरिका को "गेटवे" प्रदान करती है—एक ऐसा मार्ग जिससे अमेरिकी संसाधन सीधे चीन और ईरान की सीमाओं तक पहुँच सकते हैं।



ट्रंप प्रशासन की रणनीति में पाकिस्तान की भूमिका अब केवल आतंकवाद विरोधी सहयोग तक सीमित नहीं है। प्रोफेसर पोस्ट का कहना है कि "अगर अमेरिका की मौजूदगी पाकिस्तान में है, तो वह चीन और ईरान के करीब हो जाता है।" इसी दृष्टिकोण से पाकिस्तान को फिर से अमेरिकी सामरिक ढांचे में शामिल किया जा रहा है। यह ध्यान देने योग्य है कि वाशिंगटन बगराम एयरबेस (अफगानिस्तान) को फिर से सक्रिय करने की योजना बना रहा है। इसका उद्देश्य केवल अफगानिस्तान में स्थिति मजबूत करना नहीं है, बल्कि चीन की पश्चिमी सीमा और ईरान की सामरिक स्थापनाओं पर नजर रखना भी है।




पॉल पोस्ट ने अपने तर्क को और मजबूत करने के लिए ऑपरेशन मिडनाइट हैमर का उदाहरण दिया। 22 जून को अमेरिका ने ईरान के फोर्दो, नतान्ज़ और इस्फ़हान स्थित परमाणु ठिकानों पर हमले किए। यह अभियान इसलिए सफल रहा क्योंकि अमेरिका के पास क्षेत्रीय देशों में पहले से ही सैन्य अड्डे और तैनाती मौजूद थी। पोस्ट का कहना है कि पाकिस्तान की ओर बढ़ती अमेरिकी रुचि भी इसी तर्क से संचालित है—निकटता और पहुंच।




दिलचस्प बात यह है कि जब राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर से व्हाइट हाउस में मुलाकात की, तो इसका कोई आधिकारिक विवरण या तस्वीरें अमेरिकी पक्ष से जारी नहीं की गईं। जबकि उसी दिन तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान से मुलाकात के बाद संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। पाकिस्तान से मुलाकात की जानकारी केवल इस्लामाबाद के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट्स पर साझा की गई। यह तथ्य दर्शाता है कि अमेरिका इस साझेदारी को अभी "खुले कूटनीतिक मंच" पर लाने से हिचक रहा है।




पॉल पोस्ट के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि अमेरिका-पाकिस्तान समीकरण का वर्तमान दौर पूरी तरह सामरिक है, जबकि कूटनीति की परतें केवल औपचारिक हैं। पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति अमेरिका के लिए अनिवार्य है, खासकर जब वाशिंगटन का ध्यान चीन और ईरान की गतिविधियों पर है।




भारत के लिए यह संकेत है कि आने वाले वर्षों में दक्षिण एशिया की भू-राजनीति और जटिल हो जाएगी। पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी झुकाव अब सीमित रूप से "मदद" के रूप में नहीं, बल्कि सीधे सैन्य प्राथमिकताओं का हिस्सा बन गया है। ऐसे में नई दिल्ली को न केवल वाशिंगटन की रणनीति को बारीकी से समझना होगा, बल्कि बीजिंग और इस्लामाबाद के बदलते समीकरणों पर भी लगातार नजर रखनी होगी।