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अरावली पर्वतमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बढ़ी चिंता

अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने पर्यावरण विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं में चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे वायु प्रदूषण में वृद्धि होगी और प्राकृतिक संतुलन बिगड़ सकता है। कार्यकर्ताओं ने इस निर्णय के खिलाफ प्रदर्शन किया है और अरावली को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने की मांग की है। जानें इस मुद्दे पर और क्या कहा गया है और इसके संभावित प्रभाव क्या हो सकते हैं।
 

नई दिल्ली में अरावली पर्वतमाला की स्थिति


नई दिल्ली: अरावली पर्वतमाला के संदर्भ में एक बार फिर गंभीर चिंताएं उभरकर सामने आई हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी मिलने के बाद, पर्यावरण विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने इसका कड़ा विरोध किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अरावली पर्वतमाला में अब तक 11 से अधिक बड़ी दरारें बन चुकी हैं, जिससे थार रेगिस्तान की धूल दिल्ली एनसीआर तक पहुंच रही है।


वायु प्रदूषण और पर्यावरणीय संकट

इससे क्षेत्र में वायु प्रदूषण और पर्यावरणीय संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। अरावली को विश्व की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक माना जाता है। हाल के वर्षों में खनन, निर्माण और मानव गतिविधियों के कारण इसका तेजी से क्षरण हो रहा है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि राजस्थान के अजमेर से झुंझुनूं और हरियाणा के महेंद्रगढ़ तक फैली इन दरारों ने अरावली को कमजोर कर दिया है। 


धूल का दिल्ली एनसीआर में प्रवेश

दिल्ली एनसीआर तक कैसे पहुंच रही धुल?


इन दरारों के माध्यम से रेगिस्तानी धूल बिना किसी प्राकृतिक अवरोध के दिल्ली एनसीआर तक पहुंच रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत नई परिभाषा के अनुसार, केवल वही पहाड़ियां अरावली का हिस्सा मानी जाएंगी जिनकी ऊंचाई कम से कम 100 मीटर है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस परिभाषा के लागू होने से लगभग 90 प्रतिशत अरावली क्षेत्र संरक्षण से बाहर हो जाएगा। 


हरियाणा और गुजरात की स्थिति

हरियाणा और गुजरात में क्या है स्थिति?


हरियाणा और गुजरात जैसे राज्यों में पहले से ही अरावली की पहाड़ियां अपेक्षाकृत कम ऊंची हैं, जिससे वहां का बड़ा हिस्सा संरक्षित दायरे से बाहर हो सकता है। अरावली विरासत जन अभियान से जुड़े संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ राज्यसभा और लोकसभा सांसदों तक अपनी बात पहुंचाई है।


उनका कहना है कि अरावली दिल्ली एनसीआर के लिए प्राकृतिक ढाल का काम करती है और इसे कमजोर करने का मतलब रेगिस्तान को राजधानी तक आमंत्रण देना है। 


केंद्र सरकार का पक्ष

केंद्र सरकार ने कोर्ट में क्या कहा?


कार्यकर्ताओं का मानना है कि यदि मौजूदा हालात जारी रहे, तो भविष्य में धूल भरी आंधियां और गर्मी का असर और बढ़ेगा। वहीं, सरकार का पक्ष इससे भिन्न है। केंद्र सरकार ने अदालत में कहा है कि अरावली की नई परिभाषा वैज्ञानिक आधार पर निर्धारित की गई है।


सरकार का तर्क है कि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग परिभाषा होने से नीतिगत भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही थी। नई परिभाषा से संरक्षण और विकास के बीच संतुलन स्थापित किया जा सकेगा।


पर्यावरण कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया

पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने क्या कहा?


गुड़गांव और उदयपुर समेत कई शहरों में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किए हैं। उनका कहना है कि ऊंचाई आधारित परिभाषा से खनन और व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे पारिस्थितिक संतुलन को भारी नुकसान पहुंचेगा। कार्यकर्ताओं ने अरावली को पूरी तरह संरक्षित क्षेत्र घोषित करने और सख्त संरक्षण नीति लागू करने की मांग की है।