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अरावली पहाड़ियों की सुरक्षा: पर्यावरणीय संतुलन के लिए आवश्यक कदम

अरावली पहाड़ियां उत्तर भारत की पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इनकी सुरक्षा के लिए नए खनन पट्टों पर रोक लगाई है। #SaveAravalli आंदोलन की बढ़ती सक्रियता इस बात का संकेत है कि इन पहाड़ियों का भविष्य क्षेत्रीय स्थिरता से जुड़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इनकी सुरक्षा नहीं की गई, तो जल, जलवायु और वायु गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। जानें इस आंदोलन के पीछे के कारण और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बारे में।
 

अरावली पहाड़ियों का महत्व

नई दिल्ली: अरावली पर्वत श्रृंखला उत्तर भारत की पारिस्थितिकी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने इन पहाड़ियों की एक समान परिभाषा को मान्यता दी और नए खनन पट्टों पर रोक लगाने का आदेश दिया। इस निर्णय के बाद #SaveAravalli अभियान फिर से चर्चा में आया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली के छोटे हिस्से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यदि इनकी सुरक्षा नहीं की गई, तो जल, जलवायु और वायु गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।


अरावली का भौगोलिक और पारिस्थितिक महत्व

अरावली पहाड़ियां विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक हैं, जो लगभग 650 किलोमीटर लंबी हैं और दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से होकर गुजरती हैं। ये पहाड़ियां थार रेगिस्तान के विस्तार को रोकती हैं, हवा और मिट्टी को स्थिर रखती हैं और स्थानीय जलवायु संतुलन बनाए रखती हैं। यह क्षेत्र जल स्रोतों और कृषि के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि बारिश का पानी पहाड़ियों की टूटी हुई चट्टानों से होकर भूमिगत जलाशयों को भरता है।


आंदोलन की आवश्यकता

#SaveAravalli आंदोलन की बढ़ती सक्रियता इस बात का संकेत है कि अरावली का भविष्य क्षेत्रीय स्थिरता से जुड़ा हुआ है। यह आंदोलन पारदर्शी प्रशासन, विज्ञान आधारित नीतियों और जैव विविधता के संरक्षण की मांग करता है। इसका उद्देश्य नागरिकों, अदालतों और नीति निर्माताओं को मिलकर अरावली की रक्षा के लिए प्रेरित करना है, ताकि उत्तर भारत में जल, वायु और जीवन की गुणवत्ता सुरक्षित रह सके।


खनन और पर्यावरणीय नुकसान

अरावली क्षेत्र में चूना पत्थर, संगमरमर, सिलिका और तांबा जैसी खनिज संपदाएं मौजूद हैं। लंबे समय से अत्यधिक खनन ने पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। हरियाणा और राजस्थान में अवैध खनन ने वन क्षेत्र को घटाया, पहाड़ी ढलानों को समतल किया और भूजल स्तर को गिरा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में कई जिलों में खनन पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन जमीन पर नियंत्रण बनाए रखना चुनौतीपूर्ण रहा है।


सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और नई परिभाषा

अरावली की सुरक्षा में एक प्रमुख समस्या इसकी असमान परिभाषा रही है। विभिन्न राज्य और एजेंसियां पहाड़ियों को ढलान, वन या बफर के आधार पर पहचानती थीं। सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को मानते हुए यह तय किया कि 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियां अरावली का हिस्सा मानी जाएंगी। इससे प्रशासनिक रूप से एकरूपता आई, लेकिन छोटे पहाड़ी हिस्सों के संरक्षण को लेकर चिंता बनी हुई है।


समिति के सुझाव

केंद्रीय सशक्त समिति ने विज्ञान आधारित रणनीति का सुझाव दिया है, जिसमें अरावली का व्यापक नक्शा तैयार करना, खनन के पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन करना और संवेदनशील क्षेत्रों में कड़ाई से खनन पर रोक लगाना शामिल है। वन्यजीव मार्ग, जल स्रोत और जैव विविधता क्षेत्रों की रक्षा पर जोर दिया गया है। ये कदम पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने और उत्तर भारत की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं.