अशोक खेमका: ईमानदारी की मिसाल और 57 बार ट्रांसफर का सामना
अशोक खेमका की प्रेरक यात्रा
अशोक खेमका, हरियाणा कैडर के 1991 बैच के IAS अधिकारी, ईमानदारी का प्रतीक हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी दृढ़ता से देशभर में पहचान बनाई है।
30 अप्रैल 2025 को सेवानिवृत्त होने के बाद, वह अपने परिवार के साथ समय बिता रहे हैं। अपने 33 साल के करियर में, उन्हें 57 बार ट्रांसफर किया गया, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। 1994 में प्रधानमंत्री की रैली के लिए ट्रक देने से मना करना उनकी साहसिकता और ईमानदारी का उदाहरण है।
प्रधानमंत्री के आदेश को ठुकराना
1994 में, जब खेमका टोहाना में SDM थे, उन्हें डीसी द्वारा फोन आया कि प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव की रैली के लिए ट्रकों की व्यवस्था करनी होगी। खेमका ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। जब डीसी ने लिखित में जवाब मांगा, तो उन्होंने कहा कि यदि डीसी लिखित आदेश देंगे, तो वह भी लिखित में मना करेंगे।
57 ट्रांसफर और रॉबर्ट वाड्रा विवाद
अशोक खेमका का करियर कई चुनौतियों से भरा रहा है। 33 साल में 57 बार ट्रांसफर होने के बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी। 2012 में, वह रॉबर्ट वाड्रा-DLF भूमि सौदे को रद्द करने के कारण चर्चा में आए।
उन्होंने इस सौदे में अनियमितताओं को उजागर करने के लिए म्यूटेशन रद्द किया, जिससे उन्हें 'ईमानदार अधिकारी' के रूप में पहचान मिली। उनकी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई ने सिस्टम की कमियों को उजागर किया।
समाज को प्रेरणा
अशोक खेमका की कहानी केवल एक अधिकारी की नहीं, बल्कि सच्चाई और साहस की है। उन्होंने सिद्धांतों पर अडिग रहकर सिस्टम से टकराने का उदाहरण पेश किया। सेवानिवृत्ति के बाद भी उनकी ईमानदारी की चर्चा होती है।
यह कहानी युवाओं को सिविल सेवा में ईमानदारी के साथ काम करने के लिए प्रेरित करती है। लोगों से अपील है कि वे खेमका जैसे अधिकारियों से प्रेरणा लेकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाएं। उनकी कहानी यह सिखाती है कि सच्चाई की राह कठिन हो सकती है, लेकिन असंभव नहीं।