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असम की महिला सिविल सेवा अधिकारी नूपुर बोरा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप

असम की महिला सिविल सेवा अधिकारी नूपुर बोरा को भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में गिरफ्तार किया गया है। विशेष सतर्कता प्रकोष्ठ ने उनके पास से बड़ी मात्रा में नकद और आभूषण बरामद किए। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बताया कि बोरा पर पिछले छह महीनों से निगरानी रखी जा रही थी। आरोप है कि उन्होंने संदिग्ध व्यक्तियों को सरकारी भूमि अवैध रूप से स्थानांतरित किया। इस मामले ने असम की सामाजिक और राजनीतिक संरचना को एक बार फिर से चर्चा में ला दिया है।
 

भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तारी

नूपुर बोरा की गिरफ्तारी: असम की एक महिला सिविल सेवा अधिकारी, नूपुर बोरा, को भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते गिरफ्तार किया गया है। 2019 बैच की इस अधिकारी को विशेष सतर्कता प्रकोष्ठ ने सोमवार को हिरासत में लिया, जब उनके पास से ₹92 लाख की नकद राशि और लगभग ₹2 करोड़ के आभूषण बरामद हुए। इसके अतिरिक्त, ₹10 लाख की और नकदी उनके बारपेटा स्थित किराए के आवास से भी जब्त की गई।


छह महीने की निगरानी:
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इस कार्रवाई की पुष्टि करते हुए बताया कि बोरा पर पिछले छह महीनों से निगरानी रखी जा रही थी। उनके खिलाफ संदिग्ध ज़मीन हस्तांतरण के संबंध में कई शिकायतें प्राप्त हुई थीं। बताया जा रहा है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सरकारी और सत्र भूमि को अवैध रूप से ऐसे व्यक्तियों को स्थानांतरित किया, जिनकी नागरिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।


जन्म और शिक्षा:
नूपुर बोरा का जन्म 1989 में असम के गोलाघाट जिले में हुआ था। उन्होंने गुवाहाटी विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और सिविल सेवा में शामिल होने से पहले DIET में प्रवक्ता के रूप में कार्य किया। 2019 में, उन्हें असम सिविल सेवा में चयनित किया गया और करबी आंगलोंग जिले में सहायक आयुक्त के रूप में पहली पोस्टिंग मिली। 2023 में उनका तबादला बारपेटा जिले में सर्कल अधिकारी के रूप में किया गया।


भूमि हस्तांतरण के आरोप:
कृषक मुक्ति संग्राम समिति (KMSS) ने पहले ही बोरा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। आरोपों के अनुसार, बोरा ने भूमि से संबंधित मामलों में 'रेट कार्ड' लागू किया था, जिसमें ₹1,500 से ₹2 लाख तक की रिश्वत वसूली जाती थी। सीएम सरमा ने यह भी कहा कि बोरा ने धन के बदले में हिंदू समुदाय की भूमि को संदिग्ध व्यक्तियों को स्थानांतरित किया, जो कि राजस्व क्षेत्र में उनकी सेवा के दौरान हुआ।


राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि:
इस मामले में यह भी महत्वपूर्ण है कि जिन लोगों को ज़मीन दी गई, उन्हें स्थानीय रूप से 'मियां' मुस्लिम समुदाय से जोड़ा जा रहा है, जिन्हें अक्सर बीजेपी द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह मामला असम की सामाजिक संरचना और राजनीतिक विमर्श को एक बार फिर से केंद्र में लाता है।


आईएएस पूजा खेडकर का संदर्भ:
यह मामला आईएएस पूजा खेडकर की विवादास्पद कहानी की याद दिलाता है, जिन्हें केंद्र सरकार ने सेवा से बर्खास्त कर दिया था। खेडकर पर जाति और दिव्यांगता की झूठी जानकारी देकर परीक्षा में अतिरिक्त मौके लेने का आरोप था। उनके पास ₹22 करोड़ की संपत्ति, लग्जरी कारें, सोना और हीरे पाए गए थे।


भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई:
नूपुर बोरा का मामला न केवल प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भ्रष्टाचार और सामाजिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण की गहरी जड़ों को भी उजागर करता है। असम सरकार और विशेष सतर्कता प्रकोष्ठ की कार्रवाई इस बात का संकेत है कि अब ऐसे मामलों में कड़ी निगरानी और कठोर दंड की नीति अपनाई जा रही है। अब देखना यह होगा कि न्यायिक प्रक्रिया इस मामले को किस दिशा में ले जाती है और प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शिता कितनी बढ़ती है।