आईपीएल: क्रिकेट का कारोबार और टैक्स छूट का सवाल
आईपीएल का व्यापारिक स्वरूप
यह स्पष्ट है कि आईपीएल ने क्रिकेट को एक व्यवसाय में बदल दिया है। फिर भी, सरकार की नीतियों के कारण इस पर कोई कर नहीं लगता। जिस देश में अनुसंधान प्रयोगशालाओं को जीएसटी का भुगतान करना पड़ता है, वहां यह विशेष छूट क्यों?
रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर की पहली जीत के साथ इंडियन प्रीमियर लीग का 18वां संस्करण अपनी पारंपरिक भव्यता के साथ संपन्न हुआ। इस दौरान, विराट कोहली, जो इस टूर्नामेंट में लगातार बने रहे, को भी ट्रॉफी उठाने का मौका मिला। उनके प्रशंसकों के लिए यह एक सुखद क्षण था। हालांकि, इस टूर्नामेंट से जुड़े असंतोष के मुद्दे हमेशा की तरह बने रहे। सट्टेबाजी आईपीएल के साथ शुरू से जुड़ी रही है, लेकिन ऑनलाइन फैंटेसी गेम्स की बढ़ती लोकप्रियता ने एक सामाजिक समस्या को जन्म दिया है। यह उद्योग पिछले साल 9,100 करोड़ रुपये का हो चुका था और इसकी वृद्धि दर 30 प्रतिशत सालाना बताई जा रही है।
सरकार इस क्षेत्र से मिलने वाली आय को 'अस्थायी आमदनी' के रूप में वर्गीकृत कर 30 प्रतिशत की दर से कर वसूल रही है। इस प्रकार, इस व्यवसाय को वैधता मिल गई है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ऑनलाइन ऐप्स पर टीम बनाकर दांव लगाने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। कुछ लोगों ने दांव लगाने के लिए अपनी संपत्ति तक बेच दी है। निश्चित रूप से, कुछ लोग इस प्रक्रिया में करोड़पति बनते हैं, लेकिन यह लाखों लोगों की जेब पर भारी पड़ता है। वहीं, अवैध सट्टेबाजी में अरबों रुपये का लेन-देन होता है। क्या ये प्रवृत्तियां समाज के लिए स्वस्थ हैं?
अब एक और पहलू पर गौर करें: क्रिकेट का व्यवसायीकरण एक पुरानी प्रवृत्ति है, लेकिन आईपीएल ने इसे पूरी तरह से व्यवसाय बना दिया है। इसके बावजूद, सरकार की विशेष छूट के कारण इस पूरे व्यवसाय पर कोई कर नहीं लगता। 2023 तक की जानकारी के अनुसार, आईपीएल ने उस वर्ष 11,770 करोड़ रुपये की आय अर्जित की, जिसमें बीसीसीआई का शुद्ध लाभ 5,100 करोड़ रुपये से अधिक था। फ्रेंचाइजी टीमों को हर साल औसतन 800 से 1000 करोड़ रुपये का लाभ होता है। लेकिन जिस देश में अनुसंधान प्रयोगशालाओं को जीएसटी देना होता है, वहां ये मुनाफे कर-मुक्त क्यों हैं?