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आतंकवाद से कूटनीति तक: एक नई विश्व व्यवस्था का उदय

इस लेख में आतंकवाद से कूटनीति की ओर बढ़ते हुए समय की जटिलताओं पर चर्चा की गई है। अहमद अल-शरा और तालिबान जैसे पात्रों के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि कैसे दुनिया ने उग्रवाद को स्वीकार किया है। क्या यह नई कूटनीति स्थायी होगी? जानें इस लेख में।
 

आतंकवाद की बदलती परिभाषा

आज का समय अजीब है। कुछ समय पहले तक आतंकवाद वैश्विक चिंता का प्रमुख विषय था। 'वॉर ऑन टेरर' में सभी देशों की भागीदारी थी। न्यूयॉर्क से लेकर मुंबई तक हुए हमलों ने यह साबित किया कि आतंकवाद एक बुराई है और दुनिया इसके खिलाफ एकजुट है। दुश्मन को एक धार्मिक पहचान दी गई थी, जिसे 'इस्लामिक आतंकवाद' कहा गया। यह बताया गया कि यह इस सदी का निर्णायक युद्ध है, जो हमारे युग की पहचान बनेगा। लेकिन अब, इक्कीसवीं सदी में, वही लोग जो कभी अंधेरे में छिपे रहते थे, अब कूटनीति की मेज़ों पर हैं।


अहमद अल-शरा का उदय

पिछले हफ्ते अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र में एक दिलचस्प दृश्य देखने को मिला। सीरिया के स्वयंभू नेता अहमद अल-शरा, जो कभी अल-नुसरा फ्रंट का चेहरा थे और जिन पर नागरिकों पर हमलों के लिए 10 मिलियन डॉलर का इनाम था, अब राजनयिकों के साथ तस्वीरें खिंचवा रहे थे। अल-शरा अब एक 'सुधारक' नेता के रूप में शांति और स्थिरता की बातें कर रहे हैं।


तालिबान का कूटनीतिक संबंध

तालिबान, जिनसे दो महाशक्तियों ने बीस साल तक युद्ध लड़ा, अब काबुल में सत्ता में हैं। वही राष्ट्र, जो कभी उन्हें मिटाने की कसम खाते थे, अब उनसे राजनयिक संबंध बना रहे हैं। भारत भी इस कूटनीतिक बदलाव में शामिल हो रहा है, अफगान विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी का भारत आना तय है।


नई कूटनीति की चुनौतियाँ

यह सब दर्शाता है कि दुनिया अब उग्रवाद को ठुकराने के बजाय उसे प्रबंधित कर रही है। 'संवाद' और 'समर्थन' के बीच की रेखा अब 'स्थिरता' की भाषा में घुल चुकी है। तालिबान को बदलने की आवश्यकता नहीं है; दुनिया ने अपनी दृष्टि बदल ली है।


भविष्य की दिशा

आतंकवाद, जो कभी कूटनीति की विफलता था, अब उसी का हिस्सा बन गया है। यह हमारे समय की अंतिम त्रासदी है कि दुनिया ने उग्रवाद को हराया नहीं, बल्कि उसे स्वीकार कर लिया है।