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आपातकाल के 50 वर्ष: भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन

25 जून, 1975 को भारत में आपातकाल की घोषणा ने राजनीतिक और कानूनी ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। इंदिरा गांधी सरकार ने इस दौरान कई संशोधन किए, जिनमें मीसा का संशोधन और संविधान में बदलाव शामिल हैं। यह लेख आपातकाल के दौरान हुए प्रमुख घटनाक्रमों और उनके प्रभावों का विश्लेषण करता है। जानें कि कैसे इन परिवर्तनों ने भारत की राजनीति को आकार दिया और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित किया।
 

आपातकाल का ऐलान और उसके प्रभाव

आपातकाल के 50 वर्ष: 25 जून, 1975 को भारत में आपातकाल की घोषणा ने देश की राजनीतिक और कानूनी संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। इंदिरा गांधी की सरकार ने इस दौरान संविधान में कई महत्वपूर्ण संशोधन किए और नए अध्यादेश जारी किए, जिससे सत्ता का केंद्रीकरण बढ़ा और न्यायपालिका की शक्तियों में कमी आई। यह आपातकाल 21 महीने तक चला, जिसमें कुल 48 अध्यादेश जारी किए गए, जिनमें से आंतरिक सुरक्षा के रखरखाव अधिनियम (मीसा) में संशोधन सबसे अधिक चर्चित रहा।


1. मीसा में संशोधन

आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार ने मीसा (संशोधन) अध्यादेश को चार बार जारी किया। यह अध्यादेश प्रशासन को बिना वारंट के लोगों को गिरफ्तार करने का अधिकार देता था, जिसका उपयोग सरकार ने अपने राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार करने के लिए किया।


2. संविधान में बदलाव

आपातकाल के समय संसद ने संविधान के कुछ हिस्सों में बदलाव किए। 42वें संविधान संशोधन के तहत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और स्पीकर के चुनावों को न्यायालय के दायरे से बाहर कर दिया गया। इसके साथ ही, संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'पंथनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्द जोड़े गए, जिससे केंद्र की शक्ति में वृद्धि हुई और उच्च न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ा।


3. लोकसभा के कार्यकाल का विस्तार

संसद ने दो बार लोकसभा के कार्यकाल को एक-एक वर्ष के लिए बढ़ाया। 1976 में एक विधेयक पारित किया गया, जिसके तहत लोकसभा का कार्यकाल एक वर्ष बढ़ा दिया गया। इस दौरान विपक्षी नेता जेल में थे, जिससे सरकार को संसद के निर्णय जल्दी पास करने में सहायता मिली।


4. चुनाव विवादों पर अध्यादेश

आपातकाल के दौरान प्रधानमंत्री और स्पीकर के चुनावों को लेकर कई विवाद उत्पन्न हुए। इसके समाधान के लिए 3 फरवरी, 1977 को एक अध्यादेश जारी किया गया, जिसका उद्देश्य इन चुनावों पर उठने वाले सवालों का समाधान करना था। हालांकि, अगली सरकार ने इस अध्यादेश को निरस्त कर दिया।


5. आपातकाल की घोषणा में बदलाव

आचार्य पीडीटी के अनुसार, आपातकाल की घोषणा के लिए मंत्रिमंडल की सहमति आवश्यक नहीं थी। इंदिरा गांधी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बिना ही आपातकाल की सिफारिश की थी, जिससे विवाद उत्पन्न हुआ। लेकिन बाद में इस प्रक्रिया को और सख्त कर दिया गया, और अब आपातकाल की सिफारिश के लिए मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर आवश्यक हो गए।


6. संविधान के अनुच्छेद 359 में बदलाव

आपातकाल के दौरान संविधान के अनुच्छेद 359 में संशोधन किया गया, जिससे नागरिक अधिकारों को निलंबित करने की शक्ति राष्ट्रपति को दी गई। हालांकि, बाद में जनता पार्टी सरकार ने इस प्रावधान में संशोधन करते हुए कहा कि राष्ट्रपति केवल अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को निलंबित कर सकते हैं। अनुच्छेद 20 और 21 व्यक्ति की सुरक्षा से जुड़े अधिकारों की रक्षा करते हैं।


7. मीसा का निरस्तीकरण

आपातकाल के बाद, 1978 में मीसा को पूरी तरह से निरस्त कर दिया गया। इसके साथ ही 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान बनाए गए कुछ अन्य कानून भी समाप्त कर दिए गए। हालांकि, संविधान की प्रस्तावना में किए गए संशोधन और कुछ मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों को अब भी लागू किया जा रहा है।