आरएसएस की शताब्दी: भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक
आरएसएस का दृष्टिकोण
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भारत को केवल एक राजनीतिक भूभाग नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक राष्ट्र मानता है। इसके अनुसार, भारतीय संस्कृति ही राष्ट्रीय एकता का मूल आधार है। संघ 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना के साथ मातृभूमि की सेवा को सर्वोपरि मानता है, और यह आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर देता है। संघ की स्थापना के पीछे वीर सावरकर और बीएस मुंजे जैसे विचारकों की प्रेरणा थी, और संघ के सभी सरसंघचालकों ने इस प्रेरणा को पूरी निष्ठा से निभाया है।
आरएसएस की शताब्दी का उत्सव
आरएसएस इस वर्ष अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मना रहा है। दो अक्टूबर को विजयादशमी के दिन संघ की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होंगे। यह किसी भी सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन के लिए एक बड़ी उपलब्धि है कि वह एक सदी तक सक्रिय रह सके और अपनी प्रासंगिकता बनाए रख सके।
संघ की स्थापना और विकास
आरएसएस की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में की थी। वे एक प्रमुख चिकित्सक थे और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। संघ की स्थापना का उद्देश्य हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के विचारों का प्रसार करना था।
संघ की यात्रा
संघ की एक सौ वर्ष की यात्रा केवल एक संगठन की यात्रा नहीं है, बल्कि यह भारत की सामाजिक और राजनीतिक यात्रा भी है। संघ ने हर पड़ाव पर रचनात्मक भूमिका निभाई है, चाहे सत्ता किसी भी पार्टी के हाथों में रही हो।
संघ का सामाजिक योगदान
संघ ने स्वतंत्रता के बाद से कई सामाजिक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामोन्नति के कार्यों पर ध्यान केंद्रित करता है। संघ के लाखों स्वयंसेवक हर स्थिति में निःस्वार्थ सेवा में लगे रहते हैं।
भविष्य की चुनौतियाँ
संघ को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, लेकिन यह अपने कार्यों के माध्यम से समाज में एकता और समरसता को बढ़ावा देने का प्रयास करता है। इसके कार्यों का विस्तार कई संगठनों के माध्यम से हुआ है, जो विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं।
संघ का दृष्टिकोण
संघ का मानना है कि भारत की गुलामी केवल राजनीतिक कारणों से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता और संगठन की कमी से थी। डॉ. हेडगेवार ने इस कमी को दूर करने के लिए संघ की स्थापना की।
प्रधानमंत्री का समर्थन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ प्रमुख मोहन भागवत के 75 वर्ष पूरे होने पर एक आलेख लिखा, जिसमें उन्होंने संघ की विकास यात्रा और राष्ट्र पर इसके प्रभाव को रेखांकित किया।