आरएसएस के सौ साल: शक्ति और कमजोरियों का विश्लेषण
आरएसएस की शक्ति और कमजोरियाँ
आरएसएस अपने सौ साल पूरे होने पर खुद को शक्तिशाली मान सकता है, लेकिन वास्तविकता कुछ और है। मोदी के सामने संघ की स्थिति कमजोर साबित हुई है। सरसंघचालक मोहन भागवत को 75 वर्ष की आयु में रिटायर होने की बात कहकर बदलाव लाना पड़ा। सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने में संघ और बीजेपी को कुछ सफलता मिली है, लेकिन यह साबित करना कि इससे देश मजबूत हुआ है, उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो रहा है।
गांधी जयंती के अवसर पर संघ के सौ साल पूरे होने पर यह विचार करना आवश्यक है कि क्या आज भी संघ और भाजपा के नेताओं की सोच वही है जो पहले थी। आरएसएस पर विस्तार से लिखने वाले पूर्व स्वयंसेवक देसराज गोयल ने बताया कि दिल्ली के प्रमुख कार्यकारी पार्षद केदारनाथ साहनी ने स्वतंत्रता सेनानी चौधरी ब्रह्मप्रकाश को संघ के वार्षिक समारोह में आमंत्रित किया था।
देसराज गोयल की पुस्तक 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' संघ पर लिखी गई सबसे प्रसिद्ध किताबों में से एक है। गोयल जी ने अपनी किताब की शुरुआत इस घटना से की है। उनका मानना था कि लोग संघ की आलोचना या तो विद्वेष के कारण करते हैं या नासमझी के कारण।
हाल ही में, विजय कुमार मल्होत्रा, जो भाजपा और संघ के निर्माण में महत्वपूर्ण थे, का निधन हुआ। ये नेता दिल्ली में भाजपा और संघ को स्थापित करने वाले थे और सांप्रदायिकता से दूर थे। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में दिल्ली भाजपा के कार्यालय का उद्घाटन किया, लेकिन इन नेताओं की प्रशंसा कहीं नहीं दिखाई दी।
साहनी जी ने जो सोचा भी नहीं था, वह हुआ। चौधरी ब्रह्मप्रकाश ने निमंत्रण पत्र के उत्तर में लिखा कि क्या अनुशासित प्रदर्शन और शारीरिक व्यायाम देखकर कोई यह मान सकता है कि आरएसएस एक निरिह संगठन है? उन्होंने कहा कि ऐसे समारोह केवल उन लोगों के लिए आकर्षक हो सकते हैं जो संघ को नहीं जानते।
चौधरी ब्रह्मप्रकाश ने यह भी कहा कि आरएसएस के लोग अनुशासित हैं, लेकिन उनके पास चरित्रहनन के लिए कानाफूसी का अभियान चलाने की भी ट्रेनिंग है।
जब आरएसएस सौ साल का हो रहा है, तब भी संघ के लोग यही कहते हैं कि सवाल उठाने वाले संघ को नहीं जानते। नेहरू, पटेल और गांधी जी ने भी यही कहा था। गांधी जी ने संघ के अनुशासन की तारीफ की थी, लेकिन उन्होंने इसे निरंकुश और सांप्रदायिक संगठन कहा।
गांधी जी की हत्या के बाद, सरदार पटेल ने कहा था कि आरएसएस ने ऐसा वातावरण बनाया कि गांधी जी की हत्या संभव हुई। उन्होंने आरएसएस की गतिविधियों को सांप्रदायिक विष से भरा बताया।
नेहरू ने गोलवलकर के पत्र का जवाब देते हुए कहा कि संघ के उद्देश्य राष्ट्रविरोधी हैं।
आज, सांप्रदायिक भाषणों के बाद धर्म के आधार पर धमकियाँ दी जा रही हैं। क्या संघ, जो भाजपा का मातृसंगठन है, वही खड़ा है? शायद नहीं। संघ के पूर्व सदस्य पिछले 11 वर्षों में विरोध के स्वर उठाने लगे हैं।
आरएसएस अपने सौ साल पूरे होने पर खुद को शक्तिशाली समझ सकता है, लेकिन मोदी के सामने उसकी स्थिति कमजोर हो गई है। केवल सांप्रदायिकता बढ़ाने में सफलता मिली है, लेकिन यह साबित करना कि इससे देश मजबूत हुआ है, उनके लिए कठिन साबित हो रहा है।
संघ के सौ साल पूरे होने पर, यह स्पष्ट है कि संघ वही खड़ा है जहाँ से उसने शुरुआत की थी। इसके पीछे के कारण वही हैं जो नेहरू, पटेल, गांधी और अन्य ने कहे थे: पाखंड, झूठ, नकारात्मकता और सांप्रदायिक विचार।