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इंदिरा गांधी: एक अद्वितीय नेता की अनकही कहानी

इंदिरा गांधी का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है, जिसमें उनके विवाह, राजनीतिक संघर्ष और विवादास्पद निर्णय शामिल हैं। जानें कैसे इंदिरा प्रियदर्शनी बनीं इंदिरा गांधी और उनके जीवन के महत्वपूर्ण मोड़।
 

इंदिरा गांधी का प्रभावशाली जीवन


नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जीवन न केवल प्रभावशाली था, बल्कि यह कई दिलचस्प पहलुओं से भरा हुआ था। राजनीति में उन्हें एक सख्त और दूरदर्शी नेता के रूप में जाना जाता है, लेकिन उनके जीवन की एक अनकही कहानी यह है कि कैसे इंदिरा प्रियदर्शनी 'इंदिरा गांधी' बनीं। यह कहानी दो परिवारों और विचारधाराओं के मिलन की है।


इंदिरा का प्रारंभिक जीवन

इंदिरा प्रियदर्शनी का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में हुआ। वे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की एकमात्र संतान थीं। उनका घर का नाम 'इंदू' था, और उनके दादा मोतीलाल नेहरू ने उन्हें 'प्रियदर्शनी' नाम दिया, जिसका अर्थ है शोभा। इंदिरा ने बचपन से ही राजनीतिक माहौल में अपनी परवरिश की और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपने पिता के कार्यों से गहराई से जुड़ी रहीं।


फिरोज गांधी से पहली मुलाकात

फिरोज गांधी का जन्म 12 सितंबर 1912 को मुंबई में हुआ। उनके पिता और मां पारसी परिवार से थे। पिता की मृत्यु के बाद उनका परिवार इलाहाबाद आ गया, जहां उन्होंने अपनी पढ़ाई की और राजनीति में रुचि विकसित की। 1930 में युवा कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए उनकी मुलाकात जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू से हुई।


नजदीकियों का बढ़ना

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, जब कमला नेहरू एक बार धरने पर बेहोश हो गईं, तब फिरोज गांधी ने उनकी सहायता की। इस घटना ने उन्हें नेहरू परिवार के करीब ला दिया। धीरे-धीरे इंदिरा और फिरोज के बीच दोस्ती बढ़ी, जो बाद में प्रेम में बदल गई। हालांकि, धर्म के भिन्न होने के कारण नेहरू परिवार चिंतित था।


इंदिरा गांधी का नामकरण

जब जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गांधी से इस रिश्ते के बारे में चर्चा की, तो गांधीजी ने फिरोज को 'गांधी' उपनाम अपनाने की सलाह दी। इस प्रकार, 'फिरोज खान' 'फिरोज गांधी' बन गए। 1942 में, इंदिरा और फिरोज ने हिंदू रीति-रिवाजों से विवाह किया, जिसके बाद इंदिरा प्रियदर्शनी 'इंदिरा गांधी' बन गईं। यह वही वर्ष था जब भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम पर था।


विवादास्पद निर्णय

इंदिरा गांधी को 'आयरन लेडी' के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने 1971 के युद्ध में बांग्लादेश को स्वतंत्र कराया, बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और पोखरन में परमाणु परीक्षण जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाए। हालांकि, 1975 में लगाया गया आपातकाल उनके करियर का सबसे विवादास्पद निर्णय माना जाता है।