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इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: सहमति से संबंध बनाना अपराध नहीं

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि चार साल तक सहमति से शारीरिक संबंध बनाने के बाद विवाह से इनकार करना अपराध नहीं है। अदालत ने एक लिव-इन पार्टनर की याचिका को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि दोनों पक्षों ने स्वेच्छा से संबंध बनाए हैं, तो यह आरोप मान्य नहीं है। जानें इस मामले में अदालत ने और क्या कहा और वकील का तर्क क्या था।
 

कोर्ट का निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति चार वर्षों तक सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है और फिर विवाह करने से इनकार करता है, तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा। अदालत ने एक लिव-इन पार्टनर द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उस पर बलात्कार का आरोप लगाया गया था।


अदालत की व्याख्या

जज अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा कि यदि दो सक्षम वयस्क दो साल से अधिक समय तक लिव-इन संबंध में रहते हैं और एक-दूसरे के साथ सहवास करते हैं, तो यह माना जा सकता है कि उन्होंने स्वेच्छा से ऐसा रिश्ता चुना है, क्योंकि उन्हें इसके परिणामों की पूरी जानकारी होती है।


कोर्ट की अन्य टिप्पणियाँ

और क्या कहा कोर्ट ने?


अदालत ने 8 सितंबर को दिए गए अपने आदेश में कहा कि विवाह का वादा करने के कारण संबंध स्थापित करने का आरोप इस स्थिति में मान्य नहीं है, खासकर जब यह साबित नहीं होता कि यदि विवाह का वादा नहीं किया गया होता, तो शारीरिक संबंध नहीं बनते।


वकील का तर्क

व्यक्ति के वकील सुनील चौधरी ने कहा कि महिला के बयान से यह स्पष्ट है कि वे दोनों रिश्ते में थे और प्रारंभ में शादी के लिए भी तैयार थे। उन्होंने यह भी बताया कि कुछ कारणों से महिला ने शादी करने से इनकार कर दिया और इसके बाद शिकायत दर्ज कराई।


चार साल का रिश्ता

चार साल से थे रिलेशनशिप में


अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि आवेदक और विपक्षी चार वर्षों से एक-दूसरे के साथ थे, और यह तथ्य तहसील के कर्मचारियों और अधिकारियों को भी ज्ञात था। जब विपक्षी ने शादी करने से इनकार किया, तो आवेदक ने एसडीएम और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।


हालांकि, एसडीएम और पुलिस द्वारा की गई जांच के दौरान, दोनों पक्षों ने विवाद को सुलझा लिया और आवेदक ने मामले को आगे न बढ़ाने का निर्णय लिया। महिला ने यह याचिका महोबा के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के 17 अगस्त, 2024 के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की थी, जिसमें उसकी शिकायत खारिज कर दी गई थी.