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ईरान की परमाणु शक्ति और पश्चिम एशिया की राजनीतिक स्थिति

इस लेख में ईरान की परमाणु शक्ति और पश्चिम एशिया की राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण किया गया है। क्या ईरान अपने धार्मिक शासन को बनाए रख पाएगा, या लोग बदलाव के लिए उठ खड़े होंगे? अमेरिका और इजराइल के प्रभाव में ईरान की स्थिति क्या होगी? जानें इस लेख में।
 

ईरान की परमाणु ताकत का संकट

ईरान अपनी भूमिगत परमाणु क्षमताओं को सुरक्षित रखने में असफल रहा है। यह केवल डोनाल्ड ट्रंप की रणनीति का परिणाम नहीं है, बल्कि यह अमेरिकी सेना की शक्ति का प्रमाण है, जिसके सामने अन्य देश टिक नहीं पाते। अब सवाल यह है कि क्या पश्चिम एशिया ट्रंप और नेतन्याहू के प्रभाव में रहेगा? क्या ईरान के नागरिक खामेनेई के इस्लामी शासन को समाप्त करेंगे या इसी में बंधे रहेंगे? क्या ईरान में बदलाव आएगा या लोग जिहादी विचारधाराओं में उलझे रहेंगे? इसके अलावा, क्या ट्रंप की मनमानी बढ़ेगी या वे अपने घरेलू मुद्दों में उलझे रहेंगे?


ईरान की सीमित ताकत

मेरी राय में, चाहे ईरान कितना भी हंगामा करे और चीन-रूस उसके समर्थन में खड़े हों, लेकिन सच्चाई यह है कि ईरान के पास केवल तेल है। खाड़ी और अरब देशों के पास भी धन की कोई कमी नहीं है, लेकिन उनकी सैन्य शक्ति क्या है? इजराइल ने 1948 से लगातार इन देशों को पराजित किया है। अरब देशों के पास धन है, लेकिन वे अपनी रक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर हैं।


धार्मिक जड़ता और आधुनिकता

इजराइल की ताकत उसके यहूदी समुदाय की बुद्धिमत्ता और ज्ञान में निहित है। इस्लाम अपने धार्मिक संस्थानों में जिहाद और उन्माद को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन आधुनिक दुनिया में धर्म के आधार पर शासन संभव नहीं है। इतिहास बताता है कि यूरोपीय पुनर्जागरण ने पश्चिमी सभ्यता को एक नई दिशा दी, जिससे मानवता की क्षमताओं का विस्तार हुआ।


अमेरिका और इजराइल का प्रभाव

ईरान की स्थिति अमेरिका और इजराइल के सामने कमजोर है। अमेरिका ने इराक और अफगानिस्तान में अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है। इस्लामिक नेतृत्व धार्मिक उन्माद में खोखला है, जिससे वे अपनी ताकत को बनाए नहीं रख सकते। पश्चिम एशिया के देशों में दिखावे के लिए सब कुछ है, लेकिन असलियत में वे अंधविश्वास और परंपरागत जकड़न से ग्रस्त हैं।


भविष्य की संभावनाएँ

कुछ लोग मानते हैं कि अमेरिका और पश्चिमी सभ्यता की बनाई गई विश्व व्यवस्था के खिलाफ एक नई व्यवस्था बन सकती है, लेकिन यह असंभव है। चीन और रूस अपनी आर्थिक ताकत के बल पर कुछ कर सकते हैं, लेकिन वे स्वतंत्रता और ज्ञान के बिना आगे नहीं बढ़ सकते।