उत्तर भारत में बारिश का नया रिकॉर्ड: 2025 में मानसून ने तोड़े पुराने आंकड़े
उत्तर भारत में बारिश का हाल
उत्तर भारत में बारिश: इस वर्ष उत्तर भारत 2013 के बाद सबसे अधिक बारिश वाले मानसून का सामना कर रहा है। 2025 के मानसून सीजन में अब तक सामान्य से 21% अधिक वर्षा हुई है। इस अभूतपूर्व बारिश ने अत्यधिक भारी वर्षा की घटनाओं में तेजी लाई है, जिससे अगस्त 2025 हाल के वर्षों में सबसे विनाशकारी महीनों में से एक बन गया है।
2013 की त्रासदी की यादें
2013 की यादें फिर ताजा
2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में आई भयानक त्रासदी को लोग आज भी नहीं भूल पाए हैं। उस वर्ष हुई अत्यधिक और लगातार बारिश ने गंभीर चेतावनी दी थी। लेकिन 2025 की बारिश ने उस रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया है, जिससे जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन की तैयारियों पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
भारी बारिश के नए रिकॉर्ड
भारी बारिश के रिकॉर्ड टूटे
भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, 25 अगस्त तक उत्तर भारत में 21 बार अत्यधिक भारी वर्षा दर्ज की गई है। यह संख्या पिछले वर्ष की तुलना में 50% अधिक है, जब ऐसी 14 घटनाएं हुई थीं। 2021 से इस डेटा पर नजर रखी जा रही है और यह अब तक की सबसे अधिक संख्या है। IMD के अनुसार, यदि किसी क्षेत्र में 24 घंटे में 204.5 मिमी से अधिक वर्षा होती है, तो उसे अत्यंत भारी वर्षा माना जाता है। अगस्त में कुछ दिन बाकी हैं, इसलिए यह आंकड़ा और बढ़ सकता है।
बारिश के कारण
बारिश बढ़ने के कारण
आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र के अनुसार, यह स्थिति पश्चिमी विक्षोभ और बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर से आने वाली मानसूनी हवाओं के टकराव के कारण उत्पन्न हुई है। जब ये प्रणालियां उत्तर-पश्चिम भारत के ऊपर मिलती हैं, तो ये तीव्र वर्षा को जन्म देती हैं।
हर महीने अधिक बारिश
हर महीने रही अधिक बारिश
- 2025 में पहली बार जून, जुलाई और अगस्त तीनों ही महीनों में उत्तर भारत में सामान्य से अधिक वर्षा दर्ज की गई है।
- 26 अगस्त तक कुल बारिश: 209.4 मिमी
- 25 अगस्त को अकेले बारिश: 21.8 मिमी (दैनिक औसत 5.6 मिमी से चार गुना अधिक)
- 2024 के अगस्त में: 256.4 मिमी वर्षा (1996 के बाद सर्वाधिक), लेकिन तब अतिवृष्टि की घटनाएं कम थीं।
पहाड़ी राज्यों पर असर
पहाड़ी राज्यों पर सबसे ज्यादा असर
सबसे अधिक प्रभावित राज्य जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड रहे हैं। यहां की नाजुक भौगोलिक संरचना के कारण बाढ़, भूस्खलन और इन्फ्रास्ट्रक्चर को नुकसान का जोखिम कहीं अधिक है।
जलवायु संकट की चेतावनी
जलवायु संकट की चेतावनी
मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि यह स्थिति जलवायु अस्थिरता का संकेत है। लगातार बादल फटना, अचानक बाढ़ और भूमि कटाव की घटनाएं यह स्पष्ट करती हैं कि संवेदनशील क्षेत्रों में अब जलवायु-स्थायी बुनियादी ढांचे और बेहतर आपदा प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता है।