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उत्तराखंड की महिला पुलिसकर्मी की दर्दनाक कहानी: न्याय की तलाश में संघर्ष

उत्तराखंड की एक महिला पुलिसकर्मी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अपने और अपने बेटे के लिए स्वेच्छा से मृत्यु की अनुमति मांगी है। उनका आरोप है कि एक सीओ अधिकारी ने उनका शोषण किया और जब उन्होंने आवाज उठाई, तो उन्हें झूठे आरोपों में जेल भेज दिया गया। इस मामले ने नागरिक अधिकारों और न्याय प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं। जानें इस दर्दनाक कहानी के बारे में और कैसे महिला अब भी न्याय की तलाश में है।
 

महिला पुलिसकर्मी की आपबीती

उत्तराखंड में एक महिला पुलिसकर्मी का मामला हाल ही में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह केवल एक महिला की व्यक्तिगत कहानी नहीं है, बल्कि यह उस प्रणाली की भी कहानी है, जिसमें शिकायतकर्ता को ही अपराधी बना दिया जाता है। महिला ने राष्ट्रपति को एक भावुक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने अपने और अपने किशोर बेटे के लिए स्वेच्छा से मृत्यु की अनुमति मांगी है। उनका आरोप है कि एक सीओ रैंक के अधिकारी ने लंबे समय तक उनका शोषण किया और जब उन्होंने इसका विरोध किया, तो उन्हें झूठे आरोपों में जेल भेज दिया गया।


महिला ने राज्य और केंद्र सरकार, साथ ही प्रधानमंत्री कार्यालय से न्याय की गुहार लगाई, लेकिन हर जगह से निराशा ही मिली। उनका कहना है कि विभाग के अधिकारी अब भी उनके घर आकर बयान दर्ज करने के बहाने दबाव बना रहे हैं कि वह अपनी शिकायत वापस ले लें। इस स्थिति से महिला का नाबालिग बेटा भी मानसिक तनाव में है और उसकी मां की हालत देखकर उसने जीने की इच्छा खो दी है। महिला का कहना है कि या तो उन्हें न्याय मिले, या फिर गरिमा के साथ जीवन समाप्त करने की अनुमति दी जाए।


यह मामला केवल एक विभागीय विवाद नहीं है, बल्कि यह नागरिक अधिकारों, न्याय प्रक्रिया और पुलिस की जवाबदेही से भी जुड़ा है। यदि एक महिला कर्मचारी को अपनी शिकायत के बाद जेल में रहना पड़ता है, तो आम नागरिकों के अधिकारों की क्या सुरक्षा है? बताया जा रहा है कि जब महिला ने सीओ अधिकारी पर गंभीर आरोप लगाए, तो उसी अधिकारी की पत्नी ने पुलिस में शिकायत की कि महिला उन्हें ब्लैकमेल कर रही है। इसी शिकायत के आधार पर महिला को गिरफ्तार किया गया। जेल से रिहा होने के बाद भी वह लगातार उत्पीड़न का सामना कर रही है।