उत्तराखंड में 2025 के मानसून ने मचाई तबाही, जान-माल का भारी नुकसान
उत्तराखंड में मानसून का कहर
उत्तराखंड समाचार: उत्तराखंड में 2025 के मानसून ने व्यापक तबाही का सामना किया है। 1 जून से 10 सितंबर 2025 के बीच हुई बारिश ने सामान्य से 22% अधिक वर्षा दर्ज की, जिसके परिणामस्वरूप 85 लोगों की जान गई, 94 लोग लापता हैं और 3,500 से अधिक घरों को नुकसान पहुंचा है। इस आपदा ने देवभूमि को गहरा आघात पहुंचाया है, जिसमें मवेशियों और संपत्ति को भी भारी नुकसान हुआ है.
इस मानसून सीजन में उत्तराखंड में 1,300.2 मिलीमीटर बारिश हुई, जो सामान्य 1,060.7 मिलीमीटर से 22% अधिक है। अन्य राज्यों की तुलना में उत्तराखंड में सबसे अधिक बारिश हुई। हिमाचल प्रदेश में 44%, जम्मू-कश्मीर में 40%, लद्दाख में 427%, पंजाब में 54%, हरियाणा में 45%, दिल्ली में 40% और राजस्थान में 72% अधिक बारिश दर्ज की गई.
उत्तराखंड के 13 जिलों में बारिश का कहर
उत्तराखंड के 13 जिलों में भारी बारिश ने कहर बरपाया। बागेश्वर में 239%, चमोली में 93%, टिहरी गढ़वाल में 51%, हरिद्वार में 48%, अल्मोड़ा में 31%, देहरादून में 28%, उधम सिंह नगर में 25% और उत्तरकाशी में 18% अधिक बारिश हुई। हालांकि, कुछ जिलों में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई, जैसे पौड़ी में -28%, चंपावत में -3%, रुद्रप्रयाग में -5%, पिथौरागढ़ में -4% और नैनीताल में -6%.
जान-माल की भारी क्षति
उत्तराखंड में 1 अप्रैल 2025 से अब तक मानसून से संबंधित घटनाओं में 85 लोगों की मौत हुई, जिनमें चार की मृत्यु वन्यजीव संघर्ष के कारण हुई। इसके अलावा, 128 लोग घायल हुए, जिनमें 48 घायल वन्यजीव हमलों से प्रभावित हैं। लापता लोगों की संख्या 94 है, जिसमें 67 लोग अकेले धराली आपदा में लापता हुए। इस बारिश में मवेशियों को भी भारी नुकसान हुआ, जिसमें 167 बड़े जानवर और 6,744 छोटे जानवर (552 छोटे जानवर और 6,192 मुर्गियां) मारे गए.
संपत्ति का भारी विनाश
आपदा ने लोगों की संपत्ति को भी नहीं बख्शा। 3,726 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए, 195 घर बुरी तरह टूटे और 274 घर पूरी तरह नष्ट हो गए। इसके अलावा, 75 गौशालाएं भी पूरी तरह तबाह हो चुकी हैं.
राहत पहुंचाने में जुटी सरकार
उत्तराखंड सरकार और आपदा प्रबंधन टीमें राहत और बचाव कार्य में जुटी हैं, लेकिन बारिश और भूस्खलन ने कई क्षेत्रों में पहुंच को मुश्किल बना दिया है। यह आपदा न केवल मानवीय नुकसान का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण और बुनियादी ढांचे पर भी दीर्घकालिक प्रभाव डालेगी.