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उत्तराखंड में अधिकारी की अंग्रेजी न बोल पाने पर हाई कोर्ट का सवाल

उत्तराखंड में एक अधिकारी की अंग्रेजी बोलने की क्षमता पर हाई कोर्ट ने सवाल उठाया है। एडीएम ने हिंदी में अपनी बात रखी, जबकि चीफ जस्टिस ने पूछा कि अंग्रेजी न बोलने पर उनकी कार्यक्षमता कैसे प्रभावित होती है। यह मामला चर्चा का विषय बन गया है, जानें इसके पीछे की पूरी कहानी।
 

हाई कोर्ट में उठे सवाल

उत्तराखंड में हिंदी और अन्य भाषाओं को लेकर चल रहे विवाद के बीच एक अनोखी घटना सामने आई है। यहां एक अधिकारी की कार्य क्षमता पर उच्च न्यायालय ने सवाल उठाया है, क्योंकि उन्हें अंग्रेजी बोलने में कठिनाई हो रही है। यह स्थिति चौंकाने वाली है। धाराप्रवाह अंग्रेजी न बोल पाने को किसी अधिकारी की अयोग्यता कैसे माना जा सकता है, खासकर भारत में? यह मामला नैनीताल से संबंधित है, जहां एडीएम रैंक के अधिकारी ने उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस गुणाथन नरेंद्र और जस्टिस आलोक महारा के समक्ष हिंदी में अपनी बात रखी। इस पर चीफ जस्टिस ने उनसे पूछा कि वे हिंदी में क्यों बोल रहे हैं। एडीएम ने उत्तर दिया कि वे अंग्रेजी लिख और समझ सकते हैं, लेकिन धाराप्रवाह बोलने में असमर्थ हैं।


मुख्य सचिव से रिपोर्ट की मांग

इस पर चीफ जस्टिस ने रिपोर्ट मांगी। उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव और निर्वाचन अधिकारी से पूछा कि यदि कोई अधिकारी अंग्रेजी नहीं बोल सकता, तो वह इस पद पर रहते हुए प्रभावी ढंग से कैसे कार्य कर सकता है? जस्टिस नरेंद्र, जो कर्नाटक हाई कोर्ट में पहली बार जज बने थे, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में भी कार्यरत रहे हैं और अब उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस हैं। इस मामले की सुनवाई 28 जुलाई को होगी। लेकिन इससे पहले यह चर्चा का विषय बन गया है कि हिंदी क्षेत्र में किसी अधिकारी को अंग्रेजी न आने पर उसकी कार्यक्षमता पर क्या असर पड़ता है। यदि अधिकारी को हिंदी नहीं आती, तो यह एक महत्वपूर्ण सवाल हो सकता था।