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उत्तराखंड में बादल फटने से आई बाढ़: सैटेलाइट तस्वीरों से हुई तबाही का खुलासा

उत्तराखंड में हाल ही में आई बाढ़ ने धराली गांव में भारी तबाही मचाई है। नई सैटेलाइट तस्वीरों से स्पष्ट हुआ है कि गांव की इमारतें और सड़कें मलबे में दब गई हैं। इसरो के वैज्ञानिकों ने बाढ़ के कारणों का आकलन किया है, जिसमें ग्लेशियर के टूटने की संभावना जताई गई है। NDMA भी स्थिति की गंभीरता को समझते हुए और स्पष्ट तस्वीरों का इंतजार कर रहा है। जानें इस आपदा के पीछे के कारण और विशेषज्ञों की राय।
 

उत्तरकाशी में बाढ़ का मंजर

उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना: मंगलवार को उत्तराखंड में आई भयंकर बाढ़ ने धराली गांव में व्यापक तबाही मचाई है। नई सैटेलाइट तस्वीरों में यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि गांव की इमारतें, सड़कें और बाग-बगिचे मलबे और कीचड़ में दब गए हैं। यह मलबा खीर गंगा नदी में आई बाढ़ के कारण गांव तक पहुंचा है।


इसरो द्वारा जारी सैटेलाइट तस्वीरें

इसरो ने जारी की तबाही की सैटेलाइट तस्वीर

इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) ने अपने कार्टोसैट-2S सैटेलाइट से उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें ली हैं, जिससे नुकसान का आकलन किया गया है। वैज्ञानिकों ने 7 अगस्त 2025 को ली गई तस्वीरों की तुलना 13 जून 2024 की तस्वीरों से की, जिससे तबाही की गंभीरता का पता चला।

तस्वीरों में यह भी दिखाया गया है कि बाढ़ के कारण भागीरथी नदी का बहाव आंशिक रूप से रुक गया है। एक महत्वपूर्ण पुल और आसपास की कृषि भूमि पानी में डूब गई है, जिससे राहत और बचाव कार्यों में बाधाएं आ रही हैं।


विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों ने क्या कहा?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह बाढ़ खीर गंगा नदी के ऊपरी हिस्से में किसी ग्लेशियर के टूटने के कारण हो सकती है। दिवेचा जलवायु परिवर्तन केंद्र के वैज्ञानिक अनिल कुलकर्णी ने बताया कि यह नदी एक बर्फीले क्षेत्र से निकलती है, और 2022 की सैटेलाइट तस्वीरों में वहां एक साफ डीग्लेशियेटेड घाटी दिखाई दी थी।

कुलकर्णी ने कहा, “इस घाटी का मुंह एंड मोरेन से घिरा है, और इसके बीच से एक छोटी नदी बहती है।” उन्होंने यह भी बताया कि इस क्षेत्र में पहले भी भूस्खलन के संकेत मिले थे, जिससे पिघली बर्फ का पानी जमा होकर एक झील बन सकती थी। ऐसा माना जा रहा है कि उसी झील के अचानक फटने से यह बाढ़ आई।


NDMA की प्रतिक्रिया

NDMA के सलाहकार ने कही ये बात

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) अब और स्पष्ट तस्वीरों का इंतजार कर रहा है ताकि इसकी असली वजह की पुष्टि की जा सके। NDMA के सलाहकार सफी अहसन रिज़वी ने बताया कि प्रारंभिक जांच में पता चला है कि लगभग 6,700 मीटर की ऊंचाई पर एक ग्लेशियर का हिस्सा टूट गया, जिससे भारी मात्रा में मलबा जमा हो गया था। फिर तेज बारिश ने इस मलबे को और ढीला कर दिया।

रिज़वी ने कहा, “जब यह मलबा बहुत अधिक मात्रा में जमा हो गया, तब यह पानी के साथ तेजी से नीचे की ओर बहने लगा। खीर गंगा में ढलान बहुत तेज है, जिससे पानी और मलबा दोनों तेजी से धराली तक पहुंचे।” उन्होंने यह भी बताया कि यह इलाका उन 195 ग्लेशियर झीलों में शामिल नहीं था, जिन्हें NDMA ने पहले ‘खतरनाक’ घोषित किया था।