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उत्तराखंड में बादल फटने से प्राचीन कल्प केदार मंदिर मलबे में दबा

उत्तराखंड के धराली में बादल फटने की घटना ने देश को झकझोर दिया है। इस त्रासदी में 5 लोगों की जान गई और 100 से अधिक लोग लापता हैं। बचाव दल ने 130 लोगों को सुरक्षित निकाला है। इस आपदा में प्राचीन 'कल्प केदार' मंदिर भी मलबे में दब गया है, जो 1945 में खोजा गया था। जानें इस मंदिर के इतिहास और वर्तमान स्थिति के बारे में।
 

धराली में प्राकृतिक आपदा का कहर

उत्तराखंड के धराली में हाल ही में बादल फटने की घटना ने देशभर में हड़कंप मचा दिया है। इस त्रासदी में मिट्टी के ढेर में दबकर 5 लोगों की जान चली गई, जबकि 100 से अधिक लोग अब भी लापता हैं। बचाव दल ने 130 व्यक्तियों को सुरक्षित निकाला है। इस समय, सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और अग्निशामक दल के जवान धराली गांव में बचाव कार्य में जुटे हैं। इस आपदा में कई घर, होटल और दुकानें मलबे में दब गई हैं, और एक ऐतिहासिक मंदिर, 'कल्प केदार', भी मलबे में समा गया है।


स्थानीय निवासियों के अनुसार, यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है और इसकी वास्तुकला केदारनाथ धाम से मिलती-जुलती है, जिसके कारण इसे 'कल्प केदार' नाम दिया गया। कहा जाता है कि केदारनाथ धाम की तरह, यह मंदिर भी वर्षों तक बर्फ के नीचे दबा रहा। 1945 में खुदाई के दौरान इस मंदिर की खोज हुई थी।


मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इस प्राचीन मंदिर में 19वीं शताब्दी से पूजा-अर्चना की जा रही थी। 1945 में, जब पानी का प्रवाह कम हुआ, तो खीर गंगा के तट पर एक संरचना दिखाई दी, जिसके बाद खुदाई की गई। कई फीट खोदने के बाद, यह प्राचीन शिव मंदिर सामने आया, जिसकी संरचना केदारनाथ मंदिर जैसी थी।


खुदाई के बाद, भक्तों ने मंदिर में पूजा-अर्चना करना शुरू किया। कहा जाता है कि खीर गंगा का पानी अक्सर मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग के पास आ जाता था। अब, एक बार फिर, बादल फटने के कारण यह मंदिर मलबे में दब गया है।


1816 में, गंगा भागीरथी के उद्गम की खोज करने वाले अंग्रेज यात्री जेम्स विलियम फ्रेजर ने धराली के मंदिरों का उल्लेख किया था। इसके बाद, 1869 में गोमुख पहुंचे अंग्रेज फोटोग्राफर और शोधकर्ता सैमुअल ब्राउन ने भी धराली के तीन प्राचीन मंदिरों की तस्वीरें लीं, जो पुरातत्व विभाग के पास सुरक्षित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया था, जबकि अन्य का कहना है कि पांडवों ने केदारनाथ आने पर यहां शिवलिंग की स्थापना की थी।