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उद्धव ठाकरे की राजनीति से महाविकास अघाड़ी में उथल-पुथल

उद्धव ठाकरे की राजनीतिक गतिविधियों ने महाविकास अघाड़ी में हलचल मचा दी है। कांग्रेस पार्टी इस दुविधा में है कि उद्धव के साथ सहयोग को आगे बढ़ाना चाहिए या इसे समाप्त करना चाहिए। ठाकरे के हालिया बयानों ने कांग्रेस को असहज कर दिया है, खासकर जब उन्होंने हिंदुत्व और मराठी भाषा को जोड़कर बात की। जानें इस राजनीतिक उथल-पुथल का क्या असर होगा।
 

उद्धव ठाकरे की राजनीतिक गतिविधियाँ

उद्धव ठाकरे की राजनीतिक गतिविधियों ने केवल सत्तारूढ़ महायुति में ही नहीं, बल्कि विपक्षी महाविकास अघाड़ी में भी हलचल मचा दी है। कांग्रेस पार्टी इस दुविधा में है कि उद्धव के साथ सहयोग को आगे बढ़ाना चाहिए या इसे समाप्त करना चाहिए। कांग्रेस की चिंता इस बात से नहीं है कि उद्धव ठाकरे हाल ही में मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के साथ मिलकर दोस्ती बढ़ा रहे हैं, जब तक कि वे भाजपा का विरोध करते रहें और केंद्र सरकार की नीतियों पर कांग्रेस के साथ मिलकर हमला करते रहें।


कांग्रेस की चिंताएँ

कांग्रेस पार्टी को अपने वोटों के नुकसान की चिंता सता रही है। भाषा के मुद्दे पर कांग्रेस असहज महसूस कर रही है। उद्धव ठाकरे ने हिंदी का विरोध नहीं किया है, लेकिन उनकी मराठी भाषा को लेकर सक्रियता और हिंदी को अनिवार्य करने के निर्णय को वापस लेने से हिंदी भाषी राज्यों में नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। उत्तर भारत में कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के लिए इस पर प्रतिक्रिया देना कठिन हो रहा है।


हिंदुत्व और उद्धव का बयान

उद्धव ठाकरे ने हाल ही में कहा कि, 'महाराष्ट्र और हिंदू की पहचान है ठाकरे होना।' यह स्पष्ट है कि वे अपने पिता की पुरानी मराठी मानुष और हिंदुत्व की राजनीति की ओर लौटने का संकेत दे रहे हैं। कांग्रेस इस पर अपनी रणनीति बना रही थी, तभी उद्धव ने महाविकास अघाड़ी पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि एमवीए एकजुट नहीं रहा, तो साथ रहने का कोई अर्थ नहीं है। यह स्पष्ट है कि एमवीए की एकजुटता उद्धव और शरद पवार की राजनीति से प्रभावित हो रही है।