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एआई: औद्योगिक क्रांति के चौथे दौर में दो अलग-अलग मॉडल

इस लेख में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के विकास और इसके दो अलग-अलग मॉडल पर चर्चा की गई है। अमेरिका और चीन के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण भिन्नताएं हैं, जो औद्योगिक क्रांति के चौथे दौर में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। क्या एआई एक वरदान बन सकता है या यह एक चुनौती है? जानें इस लेख में।
 

एआई का उदय और उसके प्रभाव

अब जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) एक प्रमुख तकनीक बन चुकी है, तो इसके साथ दो अलग-अलग मॉडल भी हमारे सामने हैं। यह औद्योगिक क्रांति का चौथा चरण है, जहां एक नया मोड़ देखने को मिल रहा है। पिछले औद्योगिक क्रांतियों में, नई तकनीकों के मानक पश्चिमी देशों द्वारा निर्धारित किए गए थे। लेकिन इस बार, ग्लोबल साउथ के एक देश ने समानांतर प्रगति की है और अपने मानक भी प्रस्तुत किए हैं।


सत्येंद्र रंजन


आज की आम धारणा यह है कि हम औद्योगिक क्रांति के चौथे दौर में प्रवेश कर चुके हैं। इस दौर में उत्पादन, व्यापार और आर्थिक संरचना में बड़े बदलाव आने की संभावना है। इस दौर की पहचान एआई से की जा रही है।


भारत जैसे समाजों में एआई के प्रति आशंकाएं बढ़ रही हैं। हालांकि, यह समझना जरूरी है कि एआई केवल एक तकनीक है, जो अपने आप में समाज के कार्यों को निर्धारित नहीं कर सकती। हर तकनीक की तरह, इसका उपयोग समाज की सामूहिक समझ और योजना पर निर्भर करता है। इसलिए, एआई के प्रति फैली हुई चिंताएं एक भ्रम हैं, जो नासमझी से उत्पन्न हुई हैं।


एआई की कोई एक सामान्य परिभाषा नहीं है। लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (एलएलएम), रोबोटिक्स, और ऑटोमेशन जैसी कई तकनीकों को एआई के तहत रखा जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि एआई शब्द का उपयोग अक्सर एक व्यापक अवधारणा के रूप में किया जा रहा है, न कि किसी ठोस परिभाषा के रूप में।


(https://www.youtube.com/watch?v=8enXRDlWguU)


हालांकि, इसे परिभाषित करने के प्रयास भी हुए हैं। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, ‘एआई कंप्यूटर प्रणालियों के विकास की वह अवस्था है, जब वे ऐसे कार्य करने लगती हैं, जिन्हें करने के लिए सामान्यतः मानव बुद्धि की आवश्यकता होती है।’ यूरोपीय आयोग के अनुसार, ‘एआई वे (कंप्यूटर) सिस्टम हैं, जो अपने वातावरण का विश्लेषण करते हुए और उनके अनुसार कार्य करते हुए मेधावी व्यवहार करने लगते हैं।’


आज हम ऐसे मशीनों के युग में हैं, जो औद्योगिक क्रांति के नए दौर का स्वरूप तय कर रही हैं। औद्योगिक क्रांति का पहला दौर 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी के प्रारंभ में आया, जिसमें जल और भाप ऊर्जा का उपयोग हुआ।


दूसरा दौर 19वीं सदी के अंत से 20वीं सदी के प्रारंभ तक चला, जिसमें बिजली का उपयोग बढ़ा। तीसरा दौर 20वीं सदी के अंत में आया, जिसमें कंप्यूटर, इंटरनेट और डिजिटल तकनीक का उपयोग हुआ। अब 21वीं सदी में चौथा चरण आ चुका है, जिसमें साइबर और भौतिक दुनिया का मेल हो रहा है।


इस संदर्भ में, एआई एक विकसित तकनीक है। इसका उपयोग बढ़ने के साथ, 2023 में अमेरिकी कंपनी ओपन एआई द्वारा चैटजीपीटी के लॉन्च ने एआई की चर्चा को नई दिशा दी। विशेषज्ञों का कहना है कि चैटजीपीटी और अन्य तकनीकें एलएलएम हैं, जो भाषा को समझने और उत्पन्न करने में सक्षम हैं।


इसलिए, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि एआई एक व्यापक अवधारणा है और एलएलएम इसका केवल एक हिस्सा है। पिछले डेढ़ साल में, एलएलएम ने कई ऐसे कार्य किए हैं, जो पहले ‘ह्वाइट कॉलर’ कर्मचारियों द्वारा किए जाते थे। आशंका जताई जा रही है कि अब वही स्थिति ‘ह्वाइट कॉलर’ कर्मियों की हो सकती है।


क्या यह विस्थापन अनिवार्य है? क्या एआई तकनीक के कारण लाखों लोगों की जिंदगी में उथलपुथल अपरिहार्य है? या फिर, क्या एआई को एक वरदान में बदला जा सकता है? आइए, इन सवालों की पड़ताल करते हैं।


जुलाई के अंत में, चीन के शंघाई में विश्व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में वैश्विक एआई संचालन कार्ययोजना जारी की गई। दस्तावेज में कहा गया है कि ‘एआई मानव विकास का एक नया फ्रंटियर है।’


दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि ‘एआई युग में वैश्विक एकजुटता से हम सुरक्षा, विश्वसनीयता, और निष्पक्षता कायम रखते हुए एआई की संभावनाओं को खोल सकते हैं।’(https://www.newswire.lk/2025/07/31/13-point-global-ai-governance-action-plan-published/)


यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि आज दुनिया एआई और अन्य हाई टेक मामलों में दो खेमों में बंटती जा रही है। अमेरिका और चीन के बीच एआई के विकास और उपयोग के दो अलग दृष्टिकोण हैं।


कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के एक शोध पत्र में कहा गया है कि चीनी श्रमिकों पर टेक्नोलॉजी का प्रभाव मिला-जुला रहा है। शोधकर्ताओं में से एक सुन झोंगवेई ने कहा कि ‘हमारा डेटा इस बात की पुष्टि करता है कि चीन में श्रमिक ओटोमेशन को लेकर चिंतित नहीं हैं।’


(https://www.fredgao.com/p/a-silent-handover-how-automation)


अध्यनों के अनुसार, इसका कारण वहां ओटोमेशन का योजनाबद्ध ढंग से लागू होना है। यदि कर्मचारियों को उचित ट्रेनिंग दी जाए और सामाजिक सुरक्षा का मजबूत तंत्र हो, तो एआई युग का अनुभव सकारात्मक हो सकता है।


अमेरिकी शासक वर्ग की प्रमुख पत्रिका ‘फॉरेन अफेयर्स’ में कहा गया है कि ‘किस देश का एआई मॉडल प्रमुख बनेगा, इसका संबंध केवल बाजार की प्रतिस्पर्धा से नहीं है, बल्कि इसके नीतिगत परिणामों से भी है।’


(https://www.foreignaffairs.com/united-states/chinas-overlooked-ai-strategy)


अमेरिकी और चीनी मॉडल्स के बीच का प्रमुख अंतर एआई एप्लीकेशन्स के सोर्स का है। अमेरिकी एप्लीकेशन क्लोज्ड सोर्स मॉडल वाले हैं, जबकि चीन ने ओपेन सोर्स मॉडल पेश किए हैं।


चीन में एआई की चर्चा रोजमर्रा की जिंदगी में इसके इस्तेमाल को लेकर होती है, जबकि अमेरिका में एआई की बात आते ही तकनीकी बुनियादी ढांचे की चर्चा होती है।


(https://thenextrecession.wordpress.com/2025/07/27/ai-bubbling-up/)


एआई की अर्थव्यवस्था की झलक अमेरिका के नजरिए में देखने को मिलती है। यहां मुनाफा प्रेरक तत्व है, जबकि एआई के जरिए आम जिंदगी को आसान बनाने की सोच गायब है।


ट्रंप प्रशासन की एआई कार्ययोजना भी इसी सोच से प्रेरित है। कार्ययोजना का शीर्षक ही इसके सार को स्पष्ट करता है।


(https://www.whitehouse.gov/presidential-actions/2025/01/removing-barriers-to-american-leadership-in-artificial-intelligence/)


स्पष्ट है कि अमेरिका का मकसद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में अपनी लीडरशिप को बनाए रखना है। दूसरी ओर, चीन का ओपेन सोर्स मॉडल वैश्विक स्तर पर लोकप्रियता हासिल कर रहा है।


फॉरेन अफेयर्स के आलेख में कहा गया है कि ‘चीन के ओपेन मॉडल एआई के फायदों को व्यापक रूप से साझा कर सकते हैं।’


इस प्रकार, एआई के इस दौर में दो अलग-अलग मॉडल हमारे सामने हैं। यह औद्योगिक क्रांति का चौथा चरण है, जहां ग्लोबल साउथ ने समानांतर प्रगति की है और अपने मानक भी प्रस्तुत किए हैं।


यह स्थिति अमेरिका के नेतृत्व के लिए एक चुनौती है, जबकि चीन का दृष्टिकोण साझेपन का है। यह पूंजीवाद और समाजवाद के बीच का फर्क है।