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एक मां की न्याय की खोज: बेटी की गुमशुदगी और हत्या की सच्चाई

यह कहानी एक मां की है, जिसने अपनी बेटी आकांक्षा की गुमशुदगी के बाद न्याय की खोज में अकेले संघर्ष किया। एक डरावने सपने से शुरू होकर, विजयश्री ने पुलिस की बेरुखी का सामना किया और खुद सबूत जुटाए। जब सच सामने आया, तो यह एक मर्डर मिस्ट्री से कहीं अधिक बन गई। जानें कैसे विजयश्री ने अपनी बेटी के लिए न्याय की लड़ाई लड़ी।
 

एक मां का सपना और बेटी की रहस्यमय गुमशुदगी

एक मां के दिल में उठे सपने और उसकी बेटी आकांक्षा की रहस्यमय गुमशुदगी की कहानी एक मर्डर मिस्ट्री से कहीं अधिक है। यह एक मां की न्याय की लड़ाई है। 22 जुलाई को विजयश्री ने एक डरावना सपना देखा, जिसमें उनकी बेटी अकेली नदी किनारे बैठी थी। जब उन्होंने सुबह उसे फोन किया, तो उसका मोबाइल बंद मिला। बड़ी बहन प्रतीक्षा ने भी संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। घर का माहौल चिंताजनक हो गया।


23 जुलाई को विजयश्री कानपुर पहुंचीं और थाने-थाने दौड़ने लगीं। बर्रा, नौबस्ता और हनुमंत विहार थाने में उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया गया। अंततः 8 अगस्त को गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज हुई, लेकिन पुलिस ने इसे 'बॉयफ्रेंड के साथ भागने' का मामूली मामला मान लिया।


आकांक्षा ने एक रेस्टोरेंट से खुद को 'माही' बताकर मैसेज भेजा कि वह लखनऊ में नौकरी कर रही है, लेकिन मां को इस पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने खुद उसकी खोज शुरू की और उस किराए के कमरे तक पहुंचीं, जहां उनकी बेटी रहती थी।


पड़ोसियों ने बताया कि आकांक्षा 21 जुलाई के बाद से गायब थी। 5 सितंबर को उसका बॉयफ्रेंड सूरज सारा सामान लेकर कमरे से चला गया, जिसमें बेटी का काला ट्रॉली बैग भी शामिल था।


सूरज ने आकांक्षा के मोबाइल से मैसेज भेजने का नाटक किया, लेकिन एक गलती कर दी। उसने आकांक्षा की बहन को 'भइया' कहकर मैसेज किया, जबकि आकांक्षा कभी उसे ऐसा नहीं कहती थी। इसने मां को यकीन दिलाया कि उनकी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है।


विजयश्री ने खुद सबूत इकट्ठा किए और 1076 पर शिकायत दर्ज कराई। पुलिस पर दबाव बढ़ने पर 15 सितंबर को सूरज को हिरासत में लिया गया। पूछताछ में उसने सब कुछ कबूल कर लिया।


सूरज ने अपने दोस्त आशीष के साथ मिलकर आकांक्षा की हत्या की और उसकी लाश को काले सूटकेस में भरकर यमुना नदी में फेंक दिया। मोबाइल से वह लगातार परिवार को धोखा देता रहा।