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एच-1बी वीजा शुल्क में बदलाव: ट्रंप के आदेश से भारतीय आईटी उद्योग में चिंता

व्हाइट हाउस ने एच-1बी वीजा शुल्क में बदलाव की घोषणा की है, जो केवल नए आवेदकों पर लागू होगा। इस निर्णय से भारतीय आईटी उद्योग में चिंता का माहौल है, क्योंकि इससे कंपनियों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ सकता है। भारत सरकार इस फैसले के प्रभावों का अध्ययन कर रही है। जानें इस विषय में और क्या जानकारी है और इसका व्यापक असर क्या हो सकता है।
 

व्हाइट हाउस का स्पष्ट बयान

व्हाइट हाउस ने यह स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लागू किया गया 1,00,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) का एच-1बी वीजा शुल्क केवल नए आवेदकों पर लागू होगा। यह नियम 21 सितंबर की आधी रात के बाद दाखिल की गई याचिकाओं पर प्रभावी होगा। पहले से वीजा धारक और उनके नवीनीकरण पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।


प्रेस सचिव का स्पष्टीकरण

प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने ट्वीट करके बताया कि जो लोग पहले से एच-1बी वीजा धारक हैं और अमेरिका से बाहर हैं, उन्हें पुनः प्रवेश के समय अतिरिक्त शुल्क का भुगतान नहीं करना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह शुल्क केवल एक बार का है और मौजूदा वीजा धारक सामान्य रूप से देश से बाहर जाकर लौट सकते हैं।


ट्रंप के आदेश से उपजी चिंताएँ

ट्रंप के आदेश के बाद तकनीकी कंपनियों और प्रवासी समुदाय में चिंता का माहौल बन गया था। कई वकीलों और विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि यदि वीजा धारक समय पर वापस नहीं लौटते हैं, तो उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। भारतीय पेशेवरों के बीच भ्रम इतना बढ़ गया कि कुछ ने अंतिम समय पर भारत यात्रा की टिकटें रद्द कर दीं। रिपोर्टों के अनुसार, यदि यह नीति लागू रहती है, तो कंपनियों को किसी भी एच-1बी कर्मचारी के लिए हर वर्ष 1,00,000 डॉलर तक का खर्च उठाना पड़ सकता है।


USCIS का स्पष्टीकरण

अमेरिकी नागरिकता एवं आव्रजन सेवा (यूएससीआईएस) ने भी स्पष्ट किया कि नया शुल्क केवल उन आवेदनों पर लागू होगा, जो 21 सितंबर के बाद दाखिल किए गए हैं। निदेशक जोसेफ बी. एडलो ने बताया कि पहले से स्वीकृत याचिकाएं या जारी किए गए वीजा इस नियम के दायरे में नहीं आएंगे।


एच-1बी कार्यक्रम का उद्देश्य

एच-1बी वीजा कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी कंपनियों की उन नौकरियों को भरना है, जिनके लिए स्थानीय स्तर पर पर्याप्त कुशल कर्मचारी उपलब्ध नहीं हैं। इसके लिए कम से कम स्नातक की डिग्री की आवश्यकता होती है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह व्यवस्था सस्ते श्रमिकों का स्रोत बन चुकी है। कई विदेशी कर्मचारी सालाना लगभग 60,000 डॉलर कमाते हैं, जबकि अमेरिकी तकनीकी पेशेवरों का वेतन इससे कहीं अधिक है।


भारतीय आईटी उद्योग पर प्रभाव

भारतीय आईटी कंपनियों के लिए यह निर्णय एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। नैसकॉम ने चेतावनी दी है कि भारी शुल्क से भारतीय कंपनियों की अमेरिकी परिचालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इससे वैश्विक प्रतिस्पर्धा प्रभावित हो सकती है और अमेरिकी ग्राहकों तक सेवाएं पहुंचाना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।


भारत सरकार की प्रतिक्रिया

भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह इस फैसले के निहितार्थों का गहराई से अध्ययन कर रहा है। मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि इस कदम के मानवीय परिणाम हो सकते हैं और कई परिवारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय उद्योग ने भी इस विषय पर प्रारंभिक विश्लेषण सरकार को सौंपा है।