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ओडिशा के पूर्व आईएएस अधिकारी वीके पांडियन ने राजनीति से लिया संन्यास

ओडिशा के पूर्व आईएएस अधिकारी वीके पांडियन ने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की है। बीजू जनता दल के चुनाव में हार के बाद, उनके नाम को लेकर पार्टी में विवाद जारी है। कहा जा रहा है कि वे पर्दे के पीछे से पार्टी के मामलों को संभाल रहे हैं, जिससे पुराने नेताओं में असंतोष है। हाल ही में नुआपाड़ा सीट के उपचुनाव में बीजद की हार के बाद पांडियन को निशाना बनाया जा रहा है। जानें इस विवाद की पूरी कहानी और पांडियन के भविष्य की योजनाओं के बारे में।
 

वीके पांडियन का राजनीति से संन्यास

ओडिशा के पूर्व आईएएस अधिकारी वीके पांडियन ने राजनीति से अलविदा कहने का निर्णय लिया है। पिछले वर्ष बीजू जनता दल (बीजद) के चुनाव में हार के बाद, उन्होंने सक्रिय राजनीति से दूरी बनाने की घोषणा की थी। हालांकि, अभी भी उनके नाम को लेकर बीजद में विवाद जारी है। यह कहा जा रहा है कि वे पर्दे के पीछे से पार्टी के मामलों को संभाल रहे हैं, जो कि पार्टी के पुराने नेताओं को पसंद नहीं आ रहा है।


सूत्रों के अनुसार, पांडियन और उनकी पत्नी सुजाता कार्तिकेयन सही समय का इंतजार कर रहे हैं, जब वे बीजद की कमान फिर से संभाल सकें। हाल ही में नुआपाड़ा सीट के उपचुनाव में बीजद की हार के बाद, पांडियन को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। यह आरोप लगाया जा रहा है कि स्नेहांजिनी चूड़िया को उनके कहने पर उम्मीदवार बनाया गया था, लेकिन वे तीसरे स्थान पर रहीं। कांग्रेस के घासीराम मांझी दूसरे स्थान पर रहे, जबकि भाजपा के जय ढोलकिया ने 80 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की।


यह सीट पहले ढोलकिया के पिता के निधन के कारण खाली हुई थी, जो बीजद के विधायक थे। चुनाव परिणामों के बाद, भुवनेश्वर में बीजद के नेता अजीत बेहरा ने आरोप लगाया कि पांडियन के कारण पार्टी को इस उपचुनाव में इतनी बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। यह भी कहा जा रहा है कि बेहरा केवल एक मुखौटा हैं और बीजद के अन्य पुराने नेता पांडियन के खिलाफ एक अभियान चला रहे हैं।