कटहल की खेती: जानें कैसे करें बंपर कमाई
कटहल की खेती एक लाभकारी व्यवसाय हो सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां इसकी उपयुक्त जलवायु है। केरल, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कटहल का उत्पादन अधिक होता है। इस लेख में हम कटहल की खेती के तरीके, इसके स्वास्थ्य लाभ और उत्पादन के प्रमुख राज्यों के बारे में जानकारी देंगे। जानें कैसे आप भी कटहल की खेती से बंपर कमाई कर सकते हैं।
Sep 14, 2025, 07:01 IST
कटहल की खेती के बारे में जानें
जानें किस राज्य में होती है सबसे ज्यादा खेती
कटहल एक ऐसा पौधा है जो कई वर्षों तक फल देता है और इसे विश्व का सबसे बड़ा फल माना जाता है। इसके पके फल को सीधे खाया जा सकता है, लेकिन इसे सब्जी के रूप में भी बहुत पसंद किया जाता है। बारिश के मौसम में कटहल की खेती की जाती है। आइए जानते हैं कि भारत के किस राज्य में कटहल का सबसे अधिक उत्पादन होता है।
कटहल उत्पादन में शीर्ष राज्य
ये राज्य हैं सबसे आगे
- कटहल उत्पादन में केरल सबसे आगे है।
- यहां की जलवायु और मिट्टी कटहल की खेती के लिए अनुकूल हैं।
- राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, केरल में 42.90% कटहल का उत्पादन होता है।
अन्य राज्यों का उत्पादन
अन्य राज्यों का स्थान
- ओडिशा दूसरे स्थान पर है, जहां 9.64% कटहल का उत्पादन होता है।
- पश्चिम बंगाल तीसरे स्थान पर है, जहां 6.91% कटहल का उत्पादन होता है।
- असम चौथे स्थान पर है, जिसमें 6.86% का योगदान है।
- छत्तीसगढ़ पांचवें स्थान पर है, जहां 6.16% कटहल की पैदावार होती है।
- झारखंड छठे स्थान पर है, जिसमें 6.07% का योगदान है।
- ये छह राज्य मिलकर कुल 75% कटहल का उत्पादन करते हैं।
कटहल के स्वास्थ्य लाभ
कटहल के फायदे
- कटहल में कई प्रकार के पोषक तत्व होते हैं।
- यह फाइबर, विटामिन ए, विटामिन सी और पोटैशियम से भरपूर है।
- यह पाचन में सुधार, हृदय स्वास्थ्य को बढ़ाने और त्वचा को चमकदार बनाने में मदद करता है।
- इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं।
- कटहल कैंसर जैसी बीमारियों के खतरे को कम करता है।
- यह रक्तचाप को नियंत्रित करता है और रक्त शर्करा के स्तर को संतुलित रखता है।
कटहल की खेती के तरीके
किसान ऐसे करें खेती
- कटहल की खेती अगस्त से सितंबर में की जा सकती है।
- 10 सेमी गहरी जुताई की गई जमीन में गोबर की खाद डालें और फिर वर्मी कंपोस्ट और नीम की खली भरें।
- कटहल के पौधों की रोपाई करें, पौधों के बीच 35-40 फीट की दूरी रखें।
- बेहतर उपज के लिए नियमित निराई-गुड़ाई करें और 3-4 साल बाद फल की उम्मीद कर सकते हैं।