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कांग्रेस और सीपीएम का तालमेल: पश्चिम बंगाल में उपचुनाव की नई चुनौतियाँ

पश्चिम बंगाल में कालीगंज सीट पर उपचुनाव ने कांग्रेस और सीपीएम के बीच गठबंधन की संभावनाओं को उजागर किया है। इस निर्णय ने ममता बनर्जी के साथ भविष्य के तालमेल को प्रभावित किया है। जानें इस राजनीतिक स्थिति के पीछे के कारण और केरल में इसके संभावित प्रभाव।
 

पश्चिम बंगाल में उपचुनाव का प्रभाव

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच संभावित तालमेल पर सवाल उठने लगे हैं, खासकर कालीगंज सीट पर हुए उपचुनाव के बाद। कांग्रेस ने इस उपचुनाव में सीपीएम के साथ हाथ मिलाने का निर्णय लिया है, जो पहले चर्चा में नहीं था। माना जा रहा था कि ऐसा करने से ममता बनर्जी के साथ भविष्य के तालमेल की संभावनाएँ समाप्त हो जाएँगी।


कांग्रेस ने कालीगंज सीट पर काबिलउद्दीन शेख को अपना उम्मीदवार बनाया है, जिसे सीपीएम का समर्थन प्राप्त है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर केवल 12 प्रतिशत वोट हासिल किए थे, जिससे वह तृणमूल कांग्रेस और भाजपा से काफी पीछे रह गई थी। फिर भी, इस बार कांग्रेस ने सीपीएम के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है।


केरल में कांग्रेस के लिए संदेश

कांग्रेस और सीपीएम के इस गठबंधन का प्रचार तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों ही कर रही हैं, जिससे केरल में कांग्रेस समर्थकों के बीच यह संदेश फैल रहा है कि दोनों दल एक हैं। 2021 में सीपीएम के नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत का एक कारण यह भी था। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को समर्थन मिला, जबकि विधानसभा में सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ को।


इस बार भी लोकसभा में कांग्रेस ने 20 में से 19 सीटें जीती हैं, जो दर्शाता है कि केरल के मतदाता राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं। हालांकि, कालीगंज सीट पर सीपीएम के साथ तालमेल करने से कांग्रेस ने ममता बनर्जी के साथ संभावित सहयोग की संभावनाएँ कम कर दी हैं।