×

किडनी ट्रांसप्लांट में नई तकनीक: A टाइप किडनी को O में बदलने की खोज

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिससे A टाइप किडनी को यूनिवर्सल डोनर O टाइप में बदला जा सकता है। यह खोज किडनी ट्रांसप्लांट के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है। वर्तमान में, अमेरिका में 90,000 से अधिक लोग किडनी ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे हैं। इस तकनीक से हजारों लोगों की जान बचाने की संभावना है। जानें इस प्रक्रिया के बारे में और इसके परीक्षण के परिणाम क्या रहे।
 

किडनी की समस्या का समाधान

किडनी से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे मरीजों के लिए वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण खोज की है। अमेरिका के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा तरीका विकसित किया है, जिससे A टाइप की किडनी को यूनिवर्सल डोनर किडनी, यानी टाइप O में परिवर्तित किया जा सकता है। यह खोज ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है।


किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता

दुनिया भर में हजारों मरीज ऐसे हैं जो सही डोनर की कमी के कारण किडनी की समस्याओं से जूझ रहे हैं। अमेरिका में अकेले 90,000 से अधिक लोग किडनी ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे हैं, जिनमें से आधे का ब्लड टाइप O है। यदि डॉक्टर इस तकनीक का उपयोग कर टाइप O किडनी बना सकें, तो वे हजारों लोगों की जान बचा सकते हैं और ट्रांसप्लांट के लिए प्रतीक्षा समय को कम कर सकते हैं।


ब्लड टाइप का महत्व

किडनी ट्रांसप्लांट में ब्लड टाइप एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह निर्धारित करता है कि शरीर किसी अंग को स्वीकार करेगा या नहीं। यदि किसी व्यक्ति को उसके ब्लड ग्रुप के विपरीत किडनी लगाई जाती है, तो उसका शरीर उसे अस्वीकार कर सकता है। टाइप O किडनी को सार्वभौमिक डोनर माना जाता है, क्योंकि इसे किसी भी व्यक्ति को प्रत्यारोपित किया जा सकता है।


वैज्ञानिकों की प्रक्रिया

शोधकर्ताओं ने टाइप A डोनर किडनी को लेकर उसे टाइप O में बदलने के लिए विशेष एंजाइमों का उपयोग किया। इस प्रक्रिया में एंजाइम्स ने A ब्लड टाइप के लिए जिम्मेदार एंटीजन को काट दिया। इससे किडनी को प्रभावी रूप से साफ किया गया और उसे O प्रकार की किडनी में परिवर्तित किया गया।


परीक्षण का परिणाम

इस बदली हुई किडनी को एक ब्रेन डेड मरीज पर परीक्षण के लिए लगाया गया। पहले दो दिनों तक, यूनिवर्सल डोनर किडनी ने सामान्य रूप से कार्य किया। हालांकि, तीसरे दिन कुछ एंटीजन वापस आ गए और मरीज के इम्यून सिस्टम ने किडनी पर फिर से हमला करना शुरू कर दिया। इसका अर्थ है कि यह तकनीक काम कर रही है, लेकिन पूरी तरह से नहीं। फिर भी, यह प्रयोग भविष्य में किडनी ट्रांसप्लांट के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।