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किसानों की आत्महत्या: महाराष्ट्र में बढ़ती समस्याएं और कर्ज का बोझ

महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, खासकर अमरावती संभाग में। बारिश में देरी, घटती फसलें और बढ़ते कर्ज के दबाव ने किसानों को मानसिक तनाव में डाल दिया है। हाल ही में एक किसान ने अपनी बीमार पत्नी और कर्ज के बोझ के कारण आत्महत्या कर ली। स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि सरकार और मौसम दोनों ने किसानों का साथ नहीं दिया। यदि प्रशासन समय पर समस्याओं का समाधान करे, तो किसानों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
 

किसानों की आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं



किसानों की आत्महत्या: महाराष्ट्र में बढ़ती समस्याएं : भारत को स्वतंत्र हुए 75 साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन किसानों की समस्याएं आज भी जस की तस बनी हुई हैं। खासकर महाराष्ट्र में खरीफ सीजन से पहले किसानों की आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। अमरावती संभाग में यह घटनाएं सबसे अधिक देखी जा रही हैं।


बारिश में देरी, फसलों की घटती उपज, और बढ़ते कर्ज के दबाव ने किसानों को मानसिक तनाव में डाल दिया है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन महीनों में लगभग 767 किसानों ने आत्महत्या की है। हाल ही में, 17 जून को अकोला जिले के नीमकरदा मारकंडा गांव में 58 वर्षीय किसान देवानंद इंगले ने अपने खेत में पेड़ से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।


कर्ज और बीमारी का बोझ

बीमार पत्नी और घटती फसलें


देवानंद इंगले की पत्नी कैंसर से पीड़ित थीं, जिसके कारण उन पर भारी कर्ज चढ़ गया था। उनके पास केवल डेढ़ एकड़ जमीन थी, जो आय का एकमात्र स्रोत थी, लेकिन फसल उत्पादन में कमी आई। इस स्थिति के कारण, बैंक के ₹15,000 और रिश्तेदारों के ₹20,000 के कर्ज के बोझ तले दबकर उन्होंने आत्महत्या का कदम उठाया।


उनके निधन के बाद, घर में केवल उनका बेटा विक्की और बहु रह गए हैं। विक्की ने बताया कि डेढ़ एकड़ जमीन में परिवार का गुजारा करना बेहद कठिन हो गया था। दवाई के खर्च और अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए उन्हें मजदूरी करनी पड़ती थी। लेकिन अब बैंक और साहूकारों का दबाव बढ़ता जा रहा था, जिससे उनके पिता को यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा।


सरकार की अनदेखी

कर्ज माफी का वादा


इससे पहले, फरवरी 2021 में पास के गांव में भी एक किसान ने कर्ज के बोझ तले आत्महत्या की थी। उस पर ₹80,000 से अधिक का कर्ज था। सरकार ने ₹1,00,000 की मदद की थी, लेकिन उनकी पत्नी का कहना है कि सरकार बार-बार कर्ज माफी की घोषणाएं करती है, लेकिन वास्तविकता कुछ और है।


स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि इस बार सरकार और मौसम दोनों ने किसानों का साथ नहीं दिया। कभी सरकार मदद नहीं करती, कभी मौसम खराब होता है, और इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है। ऐसे में उत्पादन घटने के साथ-साथ मंडी में उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता।


उनका मानना है कि यदि प्रशासन और सरकार समय पर किसानों की समस्याओं का समाधान करें, तो उन्हें आत्महत्या जैसे खौफनाक कदम उठाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।