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कुन्नो बहनजी: त्याग और समर्पण की अद्भुत कहानी

कुन्नो बहनजी की कहानी एक प्रेरणादायक यात्रा है, जिसमें त्याग, समर्पण और परिवार के प्रति असीम प्रेम की मिसाल देखने को मिलती है। पंद्रह साल की उम्र में शादी के बाद, कुन्नो ने अपने पति के निधन के बाद भी साहस नहीं खोया। उन्होंने अपने परिवार को संभालने और भतीजों की देखभाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके जीवन के अनुभव और संघर्ष हमें सिखाते हैं कि प्रेम और परिवार सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। जानें उनके जीवन की और भी दिलचस्प बातें इस लेख में।
 

कुन्नो का जीवन और संघर्ष

कुन्नो, जो पंद्रह साल की उम्र में अपने छह भाई-बहनों के प्यार में पली-बढ़ी, की शादी झंग मघियाना (अब पाकिस्तान) के एक प्रतिष्ठित परिवार के युवक से तय की गई। उनकी लंबाई, सुंदरता और पवित्र सोच ने उन्हें पूरे मघियाना में लोकप्रिय बना दिया।


भाई-बहनों के प्रति उनका असीम प्रेम उन्हें सुकून देता था। यह उन दिनों की बात है जब घर पर गेहूँ पीसना और दालें छिलना आम था। कुन्नो ने कभी भी किसी काम को बेमन से नहीं किया। ससुराल में उनके पति, जो ओवरसियर थे, ने उन्हें सम्मान और प्यार दिया। लेकिन जब पति ड्यूटी पर गए, तो कुन्नो अकेली रह गई। वह हमेशा उनके स्वास्थ्य की दुआ करती और घर के काम भी संभालती।


शादी के तीन महीने बाद, कुन्नो के पति का निधन हो गया, जिससे पूरे गाँव में शोक की लहर दौड़ गई। सभी लोग उनके पति के परिवार के साथ विलाप कर रहे थे, लेकिन कुन्नो की स्थिति को कोई नहीं समझ सका।


भाई-बहनों ने रस्में पूरी कीं और कुन्नो को मायके चलने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं गई। समय के साथ ससुराल के लोग उनके प्रति बदलने लगे। कुन्नो की स्थिति deteriorate होने लगी और वह मायूस हो गई। अंततः, उनकी बहनों ने उन्हें अपने साथ ले जाने का निर्णय लिया।


कुन्नो का परिवार और उनकी भूमिका

कुन्नो ने अपने परिवार को फिर से बसाने के लिए कई पंचायतों में भाग लिया, लेकिन उन्होंने एक ही बात कही, "मुझे लिखकर दो कि जिस पर मैं शादी करूँगी, वह 100 साल तक नहीं मरेगा।" भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद, उनका परिवार चंडीगढ़ में बस गया। समय बीतता गया और सभी भाई-बहनों की शादियाँ हो गईं।


कुन्नो ने अपने छोटे भाई की शादी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह प्रसव के समय अपनी भाभी की मदद करती थीं और कई प्रसवों का अनुभव किया। भतीजे-भतीजियाँ उन्हें अपनी माँ से ज्यादा पसंद करते थे।


कुन्नो बहनजी ने हमेशा अपने परिवार के लिए काम किया। चाहे कपड़े धोना हो या खाना बनाना, वह हमेशा तत्पर रहती थीं। भतीजों की शादी के समय भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ।


बिजली की कमी के दिनों में, कुन्नो ने अपने गीतों से माहौल को खुशनुमा बना दिया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में अपने परिवार के प्रति अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं और घर लौटने की इच्छा जताई।


कुन्नो का अंतिम समय

अंतिम समय में, कुन्नो ने अस्पताल में अपने परिवार के साथ घर जाने की इच्छा जताई। घर पहुँचते ही उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनके जाने के बाद, परिवार में एक शून्य सा महसूस हुआ।


कुन्नो की भाभी भी कुछ समय पहले स्वर्ग सिधार गई थीं, जिससे कुन्नो का जीवन और भी कठिन हो गया था। अब उनके परिवार के लोग उनकी यादों को संजोते हैं और उनकी बातें करते हैं।


कुन्नो बहनजी की कहानी त्याग और समर्पण की मिसाल है। उनके जीवन से हमें सिखने को मिलता है कि परिवार और प्रेम सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।


कुन्नो की यादें



रितु धवन, चंडीगढ़


मोबाइल: 99155 83611