क्या इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाएगी सरकार?
महाभियोग प्रस्ताव की तैयारी
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने रविवार को बताया कि सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को संसद के आगामी सत्र में पेश करने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव पर अब तक 100 से अधिक सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिससे इसके सफल पारित होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। हालांकि, उन्होंने समय सीमा की पुष्टि नहीं की, लेकिन आश्वासन दिया कि समय निर्धारित कर इसकी जानकारी दी जाएगी.
आग और नकदी की बरामदगी
यह विवाद मार्च 2025 में शुरू हुआ, जब न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास में आग लग गई। इस घटना के दौरान परिसर से कथित रूप से जली या आंशिक रूप से जली नकदी बरामद की गई, जिसने मामले को और भी सनसनीखेज बना दिया। न्यायमूर्ति वर्मा ने बार-बार इस आरोप का खंडन किया और इसे उनकी छवि को धूमिल करने की साजिश बताया।
न्यायिक कार्यों से दूरी
आग लगने की घटना के बाद न्यायमूर्ति वर्मा का इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरण हुआ, और तब से उन्हें किसी भी न्यायिक कार्य की जिम्मेदारी नहीं दी गई है। उन्होंने न तो स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ली है और न ही इस्तीफा दिया है। न्यायमूर्ति वर्मा ने इसे अनुचित और अवांछित कार्यवाही करार दिया।
सर्वोच्च न्यायालय में याचिका
हाल ही में, न्यायमूर्ति वर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की है, जिसमें उन्होंने उस जांच रिपोर्ट को निरस्त करने की मांग की है, जिसमें उन्हें सरकारी आवास से नकदी पाने का दोषी ठहराया गया था। अपनी याचिका में उन्होंने कहा है कि यह प्रक्रिया असंवैधानिक और प्रक्रियागत रूप से त्रुटिपूर्ण है।
प्रक्रिया में बड़ी कमियां
याचिका में यह भी कहा गया है कि औपचारिक शिकायत के बिना ही जांच शुरू कर दी गई थी। घटना के समय न्यायमूर्ति वर्मा और उनका परिवार दिल्ली में मौजूद नहीं था, और घर में मौजूद लोगों से भी पूछताछ नहीं की गई। दिल्ली अग्निशामक विभाग और पुलिस ने न तो नकदी जब्त की और न ही कोई पंचनामा तैयार किया।
प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन
न्यायाधीश ने आरोप लगाया है कि आंतरिक जांच समिति ने उनके पक्ष की सुनवाई नहीं की और उन्हें स्पष्ट साबित करने का अवसर नहीं दिया। उन्होंने कहा कि सीसीटीवी फुटेज और गवाहों से तकरार का कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया गया। दूसरी ओर, जांच रिपोर्ट अनुमानों पर आधारित थी और इसे मीडिया में लीक कर दिया गया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंची।
पहलुओं की जांच पर प्रश्न
याचिका में यह भी बताया गया कि जांच में नकदी किसने रखी, कितनी राशि थी, धन का स्रोत, और आग लगने का वास्तविक कारण जैसे बुनियादी पहलुओं की व्यापक जांच नहीं की गई। ऐसा प्रतीत होता है कि तैयार निष्कर्षों को बाहर लाने के लिए जल्दबाजी की गई।
समितियों की रिपोर्ट्स
एक शीर्ष अदालत-नियुक्त समिति ने जांच के दौरान 10 प्रत्यक्षदर्शियों के नाम जारी किए, जिन्होंने स्टोर रूम में नकदी पाई थी। लेकिन वही समिति आंतरिक जांच को गुप्त रखकर सार्वजनिक सुनवाई नहीं करवा सकी। इसके परिणामस्वरूप, न्यायमूर्ति वर्मा ने जांच प्रक्रिया को एकतरफा और अन्यायपूर्ण बताया।
संसद में महाभियोग प्रस्ताव
संसद में बहस का माहौल गर्म है, क्योंकि महाभियोग प्रस्ताव पर अब तक 100 से अधिक सांसदों का समर्थन मिल चुका है। इसमें कांग्रेस के 40 सांसद, जिनमें राहुल गांधी का नाम भी शामिल है, ने दस्तखत किए हैं। माना जा रहा है कि यह प्रस्ताव मानसून सत्र में लोकसभा में पेश किया जा सकता है, जिससे संसद की कार्यवाही न्यायपालिका की जवाबदेही और न्यायाधीशों की निष्पक्षता को नए संदर्भ में परख सकती है.