क्या इस बार मानसून पर पड़ेगा संकट? जानें रोहिणी नक्षत्र की अनोखी कहानी
रोहिणी नक्षत्र का प्रभाव
हर साल की तरह इस बार भी सूर्य ने रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश किया, लेकिन इस बार नौतपा बिना तपे ही समाप्त हो गया। आमतौर पर यह समय पृथ्वी पर सबसे अधिक गर्मी लाने वाला माना जाता है, क्योंकि वैदिक मान्यता के अनुसार रोहिणी नक्षत्र पृथ्वी के निकटतम होता है। जब सूर्य इस नक्षत्र में होते हैं, तो उनकी गर्मी धरती को झुलसा देती है। हालांकि, इस वर्ष रोहिणी के दौरान कई क्षेत्रों में बारिश हुई और तापमान सामान्य से कम रहा।
मार्गशीर्ष में सूर्य की गति
रोहिणी के बाद सूर्य अब मार्गशीर्ष नक्षत्र में प्रवेश कर चुके हैं। यह वह समय है जब मानसून के लिए भूमि तैयार होती है और प्री-मानसून बारिश की शुरुआत होती है। लेकिन इस बार सूर्य की गति ने एक उलटी चाल पकड़ ली है। रोहिणी में गर्मी नहीं पड़ी और अब मार्गशीर्ष में प्रचंड लू चल रही है, जिसका सीधा असर मानसून की सक्रियता पर पड़ सकता है।
खरीफ फसल पर संभावित संकट
मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि इस साल बारिश भरपूर हो सकती है, लेकिन बारिशों के बीच लंबा अंतराल हो सकता है। इससे खरीफ की फसल, विशेषकर धान को नुकसान हो सकता है। आम की फसल को केमिकल से पकाया जा सकता है, लेकिन धान के लिए लगातार नमी आवश्यक होती है। यदि आद्रा नक्षत्र में बारिश नहीं हुई, तो खेत सूख सकते हैं और फसल को गंभीर नुकसान हो सकता है।
लोककथाओं में मौसम की सच्चाई
लोककथाओं में नौतपा के ताप का गहरा महत्व बताया गया है। मारवाड़ी कहावत कहती है कि यदि नौतपा के नौ दिन तपे नहीं, तो आगे की बारिश कमजोर होती है। एक अन्य कहावत में कहा गया है, "नौतपा नव दिन जोए, तो पुन बरखा पूरन होए।" यानी नौतपा जितना तपेगा, मानसून उतना अच्छा होगा।
महाकवि घाघ की चेतावनी
महाकवि घाघ की कविता में बताया गया है कि यदि आद्रा में बारिश नहीं होती, तो गृहस्थी का संतुलन बिगड़ जाता है। वह कहते हैं:
"आवत आदर ना दियो, जात ना दिनो हस्त,
का करिहे ऊ पाहुना और का करिहें गृहस्थ."
इसका अर्थ है कि यदि आद्रा में पानी नहीं गिरा, तो खेती और परिवार दोनों संकट में पड़ सकते हैं।