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क्या उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा राजनीतिक दबाव का नतीजा है?

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, लेकिन विपक्ष इसे राजनीतिक दबाव का परिणाम मानता है। महाभियोग प्रस्ताव के स्वीकार होने के बाद केंद्रीय मंत्रियों के फोन कॉल ने स्थिति को और जटिल बना दिया। क्या यह इस्तीफा केवल एक व्यक्तिगत निर्णय है, या भारतीय राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत? जानें इस घटनाक्रम के पीछे की सच्चाई और इसके संभावित प्रभाव।
 

धनखड़ के इस्तीफे से सियासी हलचल

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने राजनीतिक जगत में हलचल मचा दी है। उन्होंने अपने इस्तीफे का कारण 'स्वास्थ्य कारणों' को बताया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे कुछ और कारण हो सकते हैं। यह इस्तीफा उस समय आया है जब विपक्ष ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था, जिसे धनखड़ ने स्वीकार किया था।


विपक्ष की चिंताएं और सवाल

विपक्ष इस इस्तीफे की समयावधि पर सवाल उठा रहा है और मानता है कि धनखड़ को दबाव में आकर यह कदम उठाना पड़ा। सूत्रों के अनुसार, महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार करने के बाद दो केंद्रीय मंत्रियों ने धनखड़ से संपर्क किया, जिससे घटनाक्रम में नया मोड़ आया।


महाभियोग नोटिस का प्रभाव

क्या महाभियोग नोटिस बना इस्तीफे की वजह?

राज्यसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग का नोटिस विपक्ष द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जिसे धनखड़ ने नियमों के अनुसार स्वीकार किया। यह निर्णय सत्ता पक्ष को असहज कर गया, जिसके बाद सरकार की ओर से अप्रत्याशित प्रतिक्रिया देखने को मिली।


केंद्रीय मंत्रियों का फोन

दो केंद्रीय मंत्रियों ने किया था फोन

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, जैसे ही महाभियोग नोटिस स्वीकार हुआ, धनखड़ को केंद्रीय मंत्रियों जेपी नड्डा और किरन रिजिजू का फोन आया। इन मंत्रियों ने उन्हें बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं। धनखड़ ने जवाब दिया कि उन्होंने जो भी किया है, वह नियमों के अनुसार है।


BAC बैठक में सरकार की अनुपस्थिति

BAC बैठक में सरकार की दूरी

इस घटनाक्रम के बाद राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की बैठक बुलाई गई, लेकिन सत्ता पक्ष के नेता इस बैठक में अनुपस्थित रहे। इसे सरकार की असहमति का संकेत माना गया।


विपक्ष का आरोप

विपक्ष ने बताया ‘दबाव में लिया गया फैसला’

विपक्ष का कहना है कि धनखड़ का इस्तीफा स्वैच्छिक नहीं था, बल्कि यह एक दबाव का परिणाम था। विपक्षी नेताओं का मानना है कि जब उपराष्ट्रपति संविधान के अनुसार कार्य करता है और सत्ता को यह पसंद नहीं आता, तब ऐसे निर्णय सामने आते हैं।


सरकार की प्रतिक्रिया

सरकार को भी चौंकाया धनखड़ का निर्णय?

सूत्रों के अनुसार, सरकार को उम्मीद नहीं थी कि धनखड़ महाभियोग नोटिस स्वीकार करेंगे। इस बात से सत्ता पक्ष नाखुश था और BAC बैठक का बहिष्कार इसी नाराजगी का संकेत था।


भविष्य की संभावनाएं

क्या अब आगे कोई बड़ा बदलाव?

धनखड़ का इस्तीफा केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं प्रतीत होता। यह घटनाक्रम भारतीय राजनीति में एक नई बहस और बदलाव की ओर इशारा करता है। क्या यह महज शुरुआत है? क्या न्यायपालिका और विधायिका के बीच नए विवाद की शुरुआत हो चुकी है? ये सवाल अब चर्चा का विषय बन गए हैं।