क्या जम्मू कश्मीर की खुदाई ने खोले ऐतिहासिक रहस्य? जानें बौद्ध संस्कृति का प्रभाव
खुदाई से मिले बौद्ध स्तूप
हाल ही में जम्मू कश्मीर के बारामूला जिले में हुई खुदाई ने कई ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर किया है। जेहनपोरा क्षेत्र में तीन बौद्ध स्तूपों की खोज ने कश्मीर के दो हजार साल पुराने इतिहास की पुष्टि की है। यह क्षेत्र प्राचीन सिल्क रूट के किनारे स्थित था, और विशेषज्ञों का मानना है कि यह खोज दर्शाती है कि कश्मीर कभी बौद्ध शिक्षा और संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र था। यह जानकारी आज के राजनीतिक और धार्मिक विमर्श को भी नया दृष्टिकोण देती है। यह सवाल उठता है कि जिस कश्मीर की जड़ें बौद्ध और हिंदू परंपराओं में थीं, वहां इस्लामिक शासन कैसे स्थापित हुआ?
पीएम मोदी का उल्लेख
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में बारामूला की इस महत्वपूर्ण खोज का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि जेहनपोरा में मिले स्तूप कश्मीर के समृद्ध इतिहास को दर्शाते हैं। उनका यह बयान केवल सांस्कृतिक जानकारी नहीं था, बल्कि उन्होंने देश को याद दिलाया कि कश्मीर की पहचान एकतरफा नहीं रही। सदियों से यह भूमि ज्ञान, व्यापार और आध्यात्म का संगम रही है। इसलिए, इस खुदाई को केवल एक पुरातात्विक खोज नहीं माना जा रहा, बल्कि इसे इतिहास की दिशा बदलने वाले संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
कुषाण काल की जानकारी
खुदाई में मिले स्तूपों को कुषाण युग का माना जा रहा है, जब सिल्क रूट के माध्यम से भारत मध्य एशिया और चीन से जुड़ा था। उस समय कश्मीर व्यापार और शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, जहां बौद्ध भिक्षु ज्ञान लेकर मध्य एशिया जाते थे। यह स्पष्ट करता है कि कश्मीर की पहचान लंबे समय तक बौद्ध और हिंदू संस्कृति से जुड़ी रही। ऐसे में यह सवाल उठता है कि बाद में सत्ता का स्वरूप कैसे बदला। इतिहासकारों का मानना है कि इसके पीछे राजनीतिक अस्थिरता और बाहरी आक्रमणों का हाथ था।
पुराणों की कहानियाँ
नीलमत पुराण और कल्हण की राजतरंगिणी में कश्मीर के भूगोल और उत्पत्ति की कहानियाँ मिलती हैं। कथाओं के अनुसार, जलोद्भव नामक राक्षस ने इस क्षेत्र में आतंक फैलाया था। ऋषि कश्यप ने तपस्या कर देवताओं को बुलाया, और उनके पुत्र अनंत नाग ने बारामूला के पहाड़ों पर प्रहार किया, जिससे पानी का रास्ता खुला। इसी से कश्मीर घाटी का निर्माण हुआ। यह कथा बताती है कि बारामूला सदियों से एक प्रवेश द्वार की भूमिका निभाता रहा है, जो आगे चलकर राजनीतिक बदलावों का कारण बना।
सत्ता का संतुलन कब बदला?
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक कश्मीर आए और श्रीनगर की स्थापना की। इसके बाद आठवीं सदी में राजा ललितादित्य का उदय हुआ, जिसे कश्मीर का सिकंदर कहा जाता है। लेकिन तेरहवीं सदी में स्थिति बदलने लगी। राजा सुहादेव के कमजोर शासन के दौरान बाहरी लोग कश्मीर पहुंचे, जिनमें शाह मीर, जो मुसलमान थे, और लंकर चक, जो उत्तर का सरदार था, शामिल थे। सत्ता की कमजोरी ने बदलाव का रास्ता खोला।
मंगोल हमले का प्रभाव
1320 में मंगोल कमांडर दुलुचा ने पहाड़ी दर्रों से कश्मीर पर हमला किया, जिससे घाटी पूरी तरह तबाह हो गई। गांव उजड़ गए और शासन व्यवस्था टूट गई। इस अराजकता में रिंचन ने खुद को राजा घोषित किया, लेकिन विदेशी होने के कारण उसे वैधता की आवश्यकता थी। वह कश्मीरी समाज में स्वीकार किया जाना चाहता था। यही वह मोड़ था जहां धर्म और राजनीति एक दूसरे से टकराए।
पहला मुस्लिम शासक कैसे बना?
रिंचन ने शैव धर्म अपनाने की इच्छा जताई और मुख्य पुजारी देवस्वामी से संपर्क किया, लेकिन जाति नियमों के कारण उसे स्वीकार नहीं किया गया। ब्राह्मणों की इस अस्वीकृति ने इतिहास की दिशा बदल दी। इसके बाद रिंचन की मुलाकात सूफी संत बुलबुल शाह से हुई, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया और नाम रखा सुल्तान सदरुद्दीन। इसी के साथ कश्मीर में इस्लामिक शासन की शुरुआत हुई। बारामूला की खुदाई आज उसी ऐतिहासिक मोड़ की याद दिला रही है।