क्या भारत है यूरोप का दुश्मन? पूर्व ब्रिटिश अधिकारी के विवादास्पद बयान पर विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
भारत पर पूर्व ब्रिटिश अधिकारी का आरोप
इंटरनेशनल न्यूज. ब्रिटिश नौसेना के पूर्व अधिकारी टॉम शार्प ने एक लेख में भारत को यूरोप का 'दुश्मन' बताया है। उन्होंने रूस के साथ भारत के सैन्य और तेल व्यापार को यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा देने वाला करार दिया। शार्प का कहना है कि भारत को अब रूस और पश्चिम में से किसी एक का चयन करना होगा। उनके इस बयान ने वैश्विक स्तर पर विवाद उत्पन्न किया है। विशेषज्ञों ने इसे भारत की शांति-प्रिय भूमिका को नजरअंदाज करने वाला बताया है। उनका कहना है कि यह लेख भारत की तटस्थ नीति और कूटनीति को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है। यह लेख द टेलीग्राफ में प्रकाशित हुआ और तेजी से चर्चा का विषय बन गया।
भारत की रणनीतिक दिशा स्पष्ट है
प्रसिद्ध रणनीतिकार क्रिस ब्लैकबर्न ने शार्प के आरोपों को सख्त तरीके से खारिज किया। उन्होंने फर्स्टपोस्ट में लिखा कि यह विचार अत्यंत सतही हैं। भारत के रूस के साथ संबंध भावनात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक और ऐतिहासिक कारणों से हैं। दशकों के रक्षा सौदों और क्षेत्रीय संतुलन ने इन संबंधों को आकार दिया है। उन्होंने बताया कि भारत की नौसेना का 20% और S-400 जैसे प्रमुख हथियार प्रणाली रूस से आए हैं। ये हाल की नीति नहीं, बल्कि पुराने समझौतों का हिस्सा हैं। इसे आज की राजनीति से जोड़ना भ्रामक है।
रूस: एक ऐतिहासिक साझेदार
ब्लैकबर्न ने बताया कि रूस (पूर्ववर्ती सोवियत संघ) 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारत का सबसे बड़ा समर्थक था। जब अमेरिका पाकिस्तान के साथ था, तब रूस ने भारत का साथ दिया। यह रिश्ता केवल राजनयिक नहीं, बल्कि सैन्य और रणनीतिक स्तर पर भी गहरा था। 1980-90 के दशक में भारत का रक्षा ढांचा लगभग पूरी तरह रूस पर निर्भर था। 2018 में भारत ने रूस से 5.43 अरब डॉलर का S-400 सौदा किया। अमेरिका की CAATSA धमकियों के बावजूद भारत ने पीछे नहीं हटा। यह रिश्ता केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि विश्वास पर आधारित है।
भूगोल तय करता है कूटनीति
ब्लैकबर्न ने कहा कि भारत-रूस संबंध उसकी सुरक्षा आवश्यकताओं से निर्धारित होते हैं। भारत को रूस से कोई सीमा विवाद नहीं है, जबकि चिंता चीन और पाकिस्तान से है। रूस भारत को बिना शर्त हथियार प्रदान करता है, जो अमेरिका नहीं करता। भारत की रूस नीति को 'गलत वफादारी' कहना अनुचित है। यूरोप और भारत की स्थिति अलग है। भारत 4000 किलोमीटर दूर है और यूक्रेन युद्ध से सीधे प्रभावित नहीं है। इसलिए रूस से उसके संबंधों को यूरोपीय दृष्टिकोण से आंकना गलत है।
भारत की नीति: संतुलित और स्वतंत्र
भारत किसी एक गुट से नहीं जुड़ा है, वह QUAD और BRICS दोनों का हिस्सा है। यह कोई विरोधाभास नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हित में संतुलन है। भारत की विदेश नीति स्वायत्त है, न किसी को खुश करने के लिए, न डर से। शार्प जैसे विचार भारत की संप्रभुता को नजरअंदाज करते हैं। ब्रिटेन और अमेरिका भी अपने हितों को देखते हैं, भारत भी वही करता है। यह स्वाभाविक नीति है, किसी की तरफदारी नहीं। हर निर्णय आत्मनिर्भरता और सुरक्षा को ध्यान में रखकर लिया जाता है।
पश्चिम को चेतावनी का संकेत
ब्लैकबर्न ने चेतावनी दी कि ऐसे लेख पश्चिम के लिए खतरे की घंटी हैं। अमेरिका और ब्रिटेन अब तक भारत की तटस्थता को चीन के खिलाफ संतुलन मानते रहे हैं। लेकिन घरेलू दबाव के चलते भारत पर सख्ती की कोशिशें हो रही हैं। ग्राहम टैरिफ जैसे प्रस्ताव इस संतुलन को बिगाड़ सकते हैं। भारत को 'शत्रु' कहना, उसे दूर करने का जोखिम उठाता है। भारत एक महत्वपूर्ण साझेदार हो सकता है, अगर उसे समझा और सम्मान दिया जाए। भारत को अलग-थलग करने की नीति आत्मघाती होगी।
भारत: समस्या नहीं, पुल है
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जो विश्व शांति में विश्वास रखता है। उसे 'समस्या' नहीं, 'पुल' के रूप में देखा जाना चाहिए। वह यूरेशिया और इंडो-पैसिफिक में स्थिरता का केंद्र बन सकता है। शर्त यही है कि पश्चिम उसे बराबरी से देखे। भारत न तो पश्चिम के खिलाफ है, न रूस का गुलाम। वह अपने हितों की रक्षा कर रहा है। ब्लैकबर्न ने अपील की कि भारत की नीति को समझा जाए। अगर ऐसा हुआ तो भारत पश्चिम का सबसे मजबूत साझेदार बन सकता है।