×

क्या वंदे मातरम को मिलेगा राष्ट्रगान का दर्जा? जानें इसके इतिहास और महत्व

वंदे मातरम, भारत का राष्ट्रीय गीत, एक गहन इतिहास और प्रेरणा से भरा है। यह गीत स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाखों लोगों को प्रेरित किया। जानें कि क्यों इसे राष्ट्रगान का दर्जा नहीं मिला और इसके पीछे की कहानी क्या है। संसद में आज इस पर चर्चा होने जा रही है, जिससे यह सवाल फिर से उठेगा कि क्या वंदे मातरम को राष्ट्रगान का दर्जा मिलना चाहिए।
 

वंदे मातरम का ऐतिहासिक महत्व


नई दिल्ली: भारत का राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम एक गहन इतिहास, प्रेरणा और संघर्ष की कहानी है। यह गीत जन गण मन से लगभग 35 वर्ष पूर्व लिखा गया था, लेकिन राष्ट्रगान के रूप में जन गण मन को चुना गया। आज संसद में वंदे मातरम पर चर्चा होने जा रही है, जिससे यह सवाल फिर से उठेगा कि इसे राष्ट्रगान का दर्जा क्यों नहीं मिला।


वंदे मातरम की रचना कब हुई?

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 7 नवंबर 1876 को वंदे मातरम की रचना की। यह गीत उनके प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में 1882 में प्रकाशित हुआ। इस गीत ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाखों लोगों को प्रेरित किया। 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में, इसे पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया गया। बाद में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे सुरबद्ध किया।


स्वतंत्रता आंदोलन में वंदे मातरम का योगदान

1905 के बंगाल विभाजन के समय वंदे मातरम स्वतंत्रता संघर्ष का प्रतीक बन गया। इसकी बढ़ती लोकप्रियता से चिंतित ब्रिटिश सरकार ने इसे गाने पर कई स्थानों पर रोक लगा दी। स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक आयोजनों में इसे गाने पर पाबंदी लगाई गई, और कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया।


लाल बाल पाल त्रिमूर्ति के लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और बाल गंगाधर तिलक इस गीत के राष्ट्रगान बनने के प्रबल समर्थक थे। अरविंद घोष ने इसे भारतीय आत्मा को जागृत करने वाला गीत कहा। यहां तक कि जन गण मन के रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर ने भी इसका सम्मान किया और कांग्रेस अधिवेशन में इसे गाया। महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस ने भी वंदे मातरम को महत्वपूर्ण माना।


वंदे मातरम राष्ट्रगान क्यों नहीं बन सका?

गीत के कुछ अंशों में देवी दुर्गा और सरस्वती का उल्लेख था, जिसे कुछ मुस्लिम नेताओं ने धार्मिक भावना से जोड़कर विरोध किया। उनके अनुसार, किसी देवी-देवता की स्तुति से जुड़ा गीत सभी धर्मों के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता। मौलाना अबुल कलाम आजाद समेत कई सिख, ईसाई, और जैन संगठनों ने भी इसी तरह की आपत्ति जताई।


1937 में बनी कमेटी और समाधान

1937 में कांग्रेस ने गांधी, नेहरू, आजाद और सुभाष बोस की एक कमेटी का गठन किया। विचार-विमर्श के बाद यह तय हुआ कि वंदे मातरम के केवल पहले दो छंद धार्मिक प्रतीकों से मुक्त हैं, इसलिए इन्हें ही राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी जाएगी।


संविधान सभा में ऐतिहासिक निर्णय

24 अगस्त 1947 को संविधान सभा में इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हुई। विभिन्न सदस्यों ने अपनी राय दी:



  • नेहरू: राष्ट्रगान ऐसा होना चाहिए जो सभी को स्वीकार्य हो।

  • जैदुल्ला खान: अंतिम पद धार्मिक भावनाओं से भरा है।

  • एच. वी. कामत: वंदे मातरम ने आंदोलन को ऊर्जा दी, इसे सम्मान मिलना चाहिए।

  • केटी शाह: विवादित अंश हटाकर शुद्ध हिस्से लिए जा सकते हैं।


23-24 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की। जन गण मन को राष्ट्रगान घोषित किया गया। वंदे मातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा और राष्ट्रगान के समान सम्मान दिया जाएगा।


राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत में अंतर

जन गण मन (राष्ट्रगान) 52 सेकंड में गाया जाता है, और खड़े होकर सम्मान देना अनिवार्य है। जबकि वंदे मातरम (राष्ट्रगीत) एक सांस्कृतिक गीत है, जो राष्ट्रीय सम्मान से जुड़ा है, लेकिन इसके लिए राष्ट्रगान जैसे औपचारिक नियम नहीं हैं।