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गुमनाम व्हिसलब्लोअर का चौंकाने वाला खुलासा: कर्नाटक में मानवाधिकारों का उल्लंघन

कर्नाटक में एक गुमनाम व्हिसलब्लोअर ने अदालत में एक चौंकाने वाला खुलासा किया है, जिसमें उसने 1995 से 2014 के बीच सैकड़ों महिलाओं और नाबालिगों के शवों को दफनाने के लिए मजबूर होने का दावा किया। इस मामले ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। कर्नाटक सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एक विशेष टीम का गठन किया है। जानें इस मामले की पूरी कहानी और इसके पीछे के रहस्य।
 

संसद में सनसनीखेज खुलासा

एक गुमनाम व्हिसलब्लोअर ने धर्मस्थल से जुड़े एक मामले में अदालत में एक चौंकाने वाली कहानी प्रस्तुत की, जिसने पूरे देश में हलचल मचा दी। काले कपड़ों में, चेहरे पर पारदर्शी पट्टी के साथ वह व्यक्ति अदालत में आया और उसने बताया कि 1995 से 2014 के बीच उसे सैकड़ों महिलाओं और नाबालिगों के शवों को दफनाने या जलाने के लिए मजबूर किया गया।


इस शिकायतकर्ता ने एक पूर्व सफाईकर्मी के रूप में अदालत में मानव खोपड़ी और कई कंकालों की तस्वीरें और नक्शे पेश किए। उसने कहा कि शवों को नेत्रावति नदी के किनारे ऐसे स्थानों पर छिपाकर दफनाया गया, जहाँ मिट्टी में नमी थी, ताकि समय के साथ सबूत मिट जाएं। उसने यह भी बताया कि यदि उसने इन आदेशों का पालन नहीं किया, तो उसके और उसके परिवार की जान को खतरा था।


व्हिसलब्लोअर ने कहा कि कई शवों पर गला घोंटने के निशान और यौन उत्पीड़न के संकेत थे, और उसने एक 12 से 15 वर्षीय छात्रा की तस्वीर भी दिखाई, जिसे उसकी स्कूल यूनिफॉर्म में दफनाया गया था। एक युवती को तो गंभीर जलने की स्थिति में पाया गया।


सरकार की प्रतिक्रिया और जांच

इस खुलासे के बाद, कर्नाटक सरकार ने 20 जुलाई 2025 को चार वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम (SIT) का गठन किया। इस टीम का नेतृत्व डीजीपी प्रणब मोहंती कर रहे हैं, जिसमें डीआईजी एम.एन. अनुचेत, डीसीपी सौम्यलता, और एसपी जितेंद्र कुमार दयाम शामिल हैं। उन्हें इस मामले की गहराई से निष्पक्ष और पारदर्शी जांच करने का कार्य सौंपा गया है।


सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने SIT को पूर्ण स्वायत्तता और व्हिसलब्लोअर को सुरक्षा प्रदान करने की मांग की है। अब तक, पीड़ितों के परिवारों में से केवल अनन्या की माँ ने शिकायत दर्ज की है। कई परिवार डर के कारण सामने नहीं आ रहे हैं, लेकिन इस व्हिसलब्लोअर ने सच को उजागर करने का निर्णय लिया है ताकि वह अपने दर्द और गिल्ट से उबर सके।


यह मामला केवल एक अपराध नहीं है, बल्कि यह बड़े धार्मिक, प्रशासनिक और सामाजिक संगठनों के गठजोड़ की परतों को चुनौती दे रहा है। न्याय की यह लड़ाई अब अदालतों के साथ-साथ जनता की जागरूकता में भी लड़ी जाएगी।