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गुरु नानक देव जी की प्रेरणादायक कहानियाँ

गुरु नानक देव जी, सिख धर्म के संस्थापक, की प्रेरणादायक कहानियाँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। उनके जीवन से हमें ईमानदारी, विनम्रता और ज्ञान का महत्व समझ में आता है। इस लेख में उनके तीन महत्वपूर्ण प्रसंगों के माध्यम से यह बताया गया है कि कैसे ईमानदारी की रोटी हजार पकवानों से बेहतर होती है और अहंकार से दूर रहना चाहिए। जानिए गुरु नानक जी की शिक्षाएँ और उनके जीवन के प्रेरणादायक किस्से।
 

गुरु नानक देव जी की प्रेरणादायक कहानियाँ

गुरु नानक देव जी की प्रेरणादायक कहानियाँ: गुरु नानक देव जी, जो सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु हैं, का जन्म 1469 में तलवंडी गांव (वर्तमान में ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ। उनके पिता का नाम मेहता कालू जी और माता का नाम तृप्ता जी था। हर वर्ष उनके जन्मदिन को गुरुपर्व या प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह विशेष दिन 5 नवंबर को है। गुरु नानक का जीवन आज भी प्रेरणा का स्रोत है, जिसमें ईमानदारी, विनम्रता, प्रेम, समानता और सेवा का संदेश है। यहां उनके तीन प्रेरणादायक प्रसंग प्रस्तुत हैं।


1. ईमानदारी की रोटी

एक बार गुरु नानक देव जी और उनके शिष्य मरदाना एक गांव में पहुंचे। वहां एक गरीब किसान लालू ने उन्हें अपने घर बुलाया और अपनी सामर्थ्यानुसार रोटी-साग परोसा। तभी जमींदार मलिक भागु का सेवक आया और उन्हें जमींदार के घर भोजन के लिए आमंत्रित किया। गुरु नानक लालू की रोटी लेकर जमींदार के घर गए। वहां पर कई प्रकार के पकवान परोसे गए, लेकिन दोनों ने खाना शुरू नहीं किया। जमींदार ने पूछा कि गरीब की सूखी रोटी में ऐसा क्या स्वाद है जो उसके पकवानों में नहीं है?


जमींदार की रोटी और लालू की रोटी

गुरु नानक ने चुपचाप एक हाथ में लालू की रोटी और दूसरे हाथ में जमींदार की रोटी पकड़ी। लालू की रोटी से दूध की धार निकली, जबकि जमींदार की रोटी से खून। गुरु जी ने कहा, 'लालू की रोटी में प्रेम और ईमानदारी है, जबकि तुम्हारी रोटी में बेईमानी का धन और मासूमों का खून है।' जमींदार उनके चरणों में गिर पड़ा और एक अच्छा इंसान बन गया।


क्या सीख मिलती है?

ईमानदारी की एक रोटी हजार पकवानों से बेहतर होती है। चाहे पद ऊंचा हो या नीचा, ईमानदार व्यक्ति को हमेशा इज्जत मिलती है। हमेशा ईमानदार रहना चाहिए।


2. उड़ती चटाई

गुरु नानक अपने दो शिष्यों के साथ श्रीनगर, कश्मीर गए। वहां लोग उनकी सरलता को जानते थे। एक दिन हजारों की भीड़ इकट्ठा हुई। पंडित ब्रह्मदास, जो देवी उपासना में माहिर थे, उड़ती चटाई पर सवार होकर आए। लेकिन गुरु नानक वहां नहीं दिखे। लोगों ने बताया कि वे आपके सामने ही बैठे हैं। ब्रह्मदास को लगा कि मजाक हो रहा है। जब चटाई जमीन पर गिरी, तो वह भी गिरे।


अहंकार का अंधकार

ब्रह्मदास ने नौकर से पूछा कि गुरु क्यों नहीं दिखे। नौकर ने कहा कि अहम की पट्टी बंधी थी। अगले दिन जब वह विनम्र होकर गए, तो गुरु जी दिखे और सत्संग कर रहे थे। ब्रह्मदास ने पूछा कि कल क्यों नहीं दिखे? गुरु जी ने कहा, 'अहंकार का अंधकार था। कीट-पतंगे भी उड़ते हैं, क्या तुम उनके बराबर बनना चाहते हो?' ब्रह्मदास को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने ज्ञान लिया।


क्या सीख मिलती है?

अहंकार से बड़ा अंधकार कोई नहीं होता। प्रसिद्धि पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए।


3. ज्ञान का घमंड

गुरु नानक अपने शिष्यों के साथ एक ज्ञानी गांव के पास रुके और बाहर डेरा डाला। गांव वालों को पता चला तो वे दूध से भरे गिलास लेकर आए। गुरु जी ने उसमें गुलाब की पंखुड़ियां डाल दीं। गांव वाले लौट गए और फिर न्योता देने आए।


ज्ञान का सम्मान

शिष्य हैरान थे कि पहले गांव नहीं गए, दूध में फूल डाले, अब न्योता? गुरु जी ने कहा, 'यह सांकेतिक था। गांव ज्ञान से भरा है, दूध लबालब है – हमें क्या दोगे? मैंने फूल डाले, मतलब तुम्हारा ज्ञान नहीं छेड़ूंगा।' उन्होंने स्वीकार किया और न्योता दिया।


क्या सीख मिलती है?

ज्ञान का घमंड नहीं करना चाहिए, दूसरों का सम्मान करना चाहिए। तभी सुख, शांति और इज्जत मिलती है।