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गुरुग्राम में दयाशंकर की डायरी नाटक ने महानगरीय जीवन की त्रासदी को उजागर किया

गुरुग्राम में 'दयाशंकर की डायरी' नाटक ने महानगरीय जीवन की त्रासदी को दर्शाया। यह नाटक एक युवा अभिनेता की संघर्ष कहानी को प्रस्तुत करता है, जो मुंबई में अपने सपनों की तलाश में है। नाटक में उसके प्यार और असफलता की कहानी को दर्शकों ने सराहा। जानिए इस नाटक में क्या खास था और किस तरह से इसे प्रस्तुत किया गया।
 

गुरुग्राम में नाटक का सफल मंचन


(गुरुग्राम समाचार) गुरुग्राम। हरियाणा इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स द्वारा प्रस्तुत एकल नाटक 'दयाशंकर की डायरी' का छठा प्रदर्शन रंग परिवर्तन स्टूडियो में हुआ। इस नाटक का निर्देशन विश्व दीपक त्रिखा ने किया, जबकि राजकीय महाविद्यालय सेक्टर-9 गुरुग्राम के प्रवक्ता डॉ. सुरेंद्र शर्मा ने इसे अभिनीत किया। यह नाटक नादिरा जहीर बब्बर द्वारा लिखा गया है।


महानगरीय जीवन की त्रासदी

डॉ. सुरेंद्र शर्मा द्वारा अभिनीत 'दयाशंकर की डायरी' एक असफल अभिनेता की कहानी के माध्यम से महानगरीय जीवन की कठिनाइयों को दर्शाता है, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। नाटक में प्रकाश व्यवस्था और ध्वनि प्रसारण का कार्य जगदीप जुगनू ने किया, जबकि कला और स्टेज सेटिंग मनीष खरे ने संभाली। समन्वयक का कार्य समीर शर्मा ने किया और प्रोडक्शन का जिम्मा अविनाश सैनी ने लिया।


एक युवा अभिनेता की संघर्ष कहानी


यह एकल नाटक एक युवा अभिनेता की यात्रा को दर्शाता है, जो मुंबई में एक अभिनेता बनने का सपना लेकर आता है। मजबूरी में उसे एक ऑफिस में क्लर्क की नौकरी करनी पड़ती है। सीमित वेतन के कारण वह हमेशा आर्थिक तंगी में रहता है। दफ्तर के माहौल से निराश दयाशंकर को अपने बॉस की बेटी से एकतरफा प्यार हो जाता है।


वह उससे शादी करने के सपने देखने लगता है, लेकिन लड़की अपने पिता के धनवान मित्र के बेटे से विवाह कर लेती है। इससे दयाशंकर का मनोबल टूट जाता है और उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। इस नाटक का अंत आर्थिक तंगी और टूटते सपनों की त्रासदी के साथ होता है। इस अवसर पर गुरुग्राम के बुद्धिजीवी और रंग प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।